- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 890
हम चाहते हैं गुरुजी,
अपना तुम्हें बनाना ।
हम चाहते हैं अपने तेरे जो,
उनमें आना ।।
समझता न इशारे मैं,
दो बता खुल के हमें ।
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।स्थापना।।
जल चढ़ाने आता मैं रोज हूँ
नाक पे अपनी रखता न बोझ हूँ
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।जलं।।
भेंटने चन्दन आता मैं रोज हूँ
कुछ कुछ मैं जल भिन्न सरोज हूँ
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।चन्दनं।।
भेंटने अक्षत आता मैं रोज हूँ
लचीली बेंत सी रखता सोच हूँ
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।अक्षतं।।
पुष्प चढ़ाने आता मैं रोज हूँ
सिर्फ नाम का बस मनोज हूँ
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।पुष्पं।।
भेंटने नेवज आता मैं रोज हूँ
‘मन भर’ जो, सो सुदूर मन-मौंज हूँ
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।नैवेद्यं।।
दीप चढ़ाने आता मैं रोज हूँ
विजित-अख बेदाग चाँद दोज हूँ
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।दीपं।।
धूप चढ़ाने आता मैं रोज हूँ
मति हंस रखता, करता न क्रोध हूँ
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।धूपं।।
भेंटने श्री फल आता मैं रोज हूँ
निज प्रशंस-पल करता सकोच हूँ
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।फलं।।
अर्घ्य चढ़ाने आता मैं रोज हूँ
नख-शिख श्रावक धर्म से ओत-प्रोत हूँ
‘के जुड़ पाऊँ में तुझसे,
करना होगा क्या मुझे ।।
दो बता खुल के हमें,
समझता न इशारे मैं ।
दो बता खुल के हमें,
दो बता खुल के हमें ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
टोका-टाँकी के बिना,
दे बना
गुरु जी अन्तर्मना
जयमाला
भव ढ़ेर पुण्य
अजमेर धन्य
वैराग वन्त
श्रीमन्त नन्द
जय जय जयन्त
मारग जिनन्द
गजराज, ढ़ोल
अद्भुत बिनौल
जश-तप अमोल
‘हरि-बोल’ बोल
पल यह अनन्य
भव ढ़ेर पुण्य
अजमेर धन्य
कच लोच हाथ
पट मोच हाथ
संबोध हाथ
‘हरि-बोल’ बोल
जश-तप अमोल
‘हरि-बोल’ बोल
पल यह अनन्य
भव ढ़ेर पुण्य
अजमेर धन्य
कल सिद्ध स्वाम
मुनि विद्य नाम
सद्-गुरु प्रणाम
‘हरि-बोल’ बोल
जश-तप अमोल
‘हरि-बोल’ बोल
पल यह अनन्य
भव ढ़ेर पुण्य
अजमेर धन्य
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
जिया श्री गुरु जितना,
गंभीर न सिन्धु उतना
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