- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 883
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।स्थापना।।
आभा रतनारी
जल कंचन झारी
करते की तुम्हें अर्पण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।जलं।।
आभा मनहारी
रज मलयज झारी
करते की तुम्हें अर्पण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।चन्दनं।।
आभा सोनाली
थाली धाँ शाली
करते की तुम्हें अर्पण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।अक्षतं।।
आभा दिव न्यारी
गुल नन्द’न क्यारी
करते की तुम्हें अर्पण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।पुष्पं।।
आभा बलहारी
चरु गो घृत वाली
करते की तुम्हें अर्पण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।नैवेद्यं।।
आभा दृग्-हारी
अनबुझ दीवाली
करते की तुम्हें अर्पण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।दीपं।।
आभा गुणकारी
सार्थ सुगंधा’री
करते की तुम्हें अर्पण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।धूपं।।
आभा अर ना’री
फल पुर-वैशाली
करते की तुम्हें अर्पण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।फलं।।
आभा ध्रुव तारी
दरब सरब थाली
करते की तुम्हें अर्पण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
छूते ही आपके चरण
छूने में आया गगन
कोटि कोटि नमन
अय ! शिरोमण श्रमण
आपको कोटि कोटि नमन ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
तन पानी,
दे पावन कर मन
त्यों गुरु-वाणी
जयमाला
आई ‘कि उड़ती उड़ती खबर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
छूप में खड़े, तान के छाता
पत्थर बदल, फल देना आता
परहित आतुर, दूसरे ही तरुवर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
आई ‘कि उड़ती उड़ती खबर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
कान पकड़े नहीं, ‘के दे देते माफी
आँख भिंजाते खुद, भले बच्चों की गुस्ताखी
गुरु पूर्ण-माँ सार्थक अखर-अखर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
आई ‘कि उड़ती उड़ती खबर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
छूप में खड़े, तान के छाता
पत्थर बदल, फल देना आता
परहित आतुर, दूसरे ही तरुवर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
आई ‘कि उड़ती उड़ती खबर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
मिटा खुद को, बना और को दिया
नदिया ने कब अपना पानी पिया
काग’ज उजारने घिस चली रबर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
आई ‘कि उड़ती उड़ती खबर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
छूप में खड़े, तान के छाता
पत्थर बदल, फल देना आता
परहित आतुर, दूसरे ही तरुवर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
आई ‘कि उड़ती उड़ती खबर
दिल बहुत बड़ा रखते हैं, गुरुवर
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
अब्बल गुरु जी,
‘जि बात बनाने में,
न ‘कि बातें
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