- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 856
=हाईकू=
न कुछ-कुछ अपना,
न बहुत-कुछ अपना ।
पता तुझे,
मैं तुझे मानूँ सब-कुछ अपना ।।
ये दिल मेरा,
है तेरी ही तस्वीरों से भरा-पूरा ।
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।स्थापना।।
गंग जल लिये खड़ा हूँ
मैं निश्चल हिये खड़ा हूँ
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा
मैं मानूँ सब-कुछ अपना तुझे
तू अपना ले मुझे
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।जलं।।
रज मलयज लिये खड़ा हूँ
मैं मोति गज लिये खड़ा हूँ
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा
मैं मानूँ सब-कुछ अपना तुझे
तू अपना ले मुझे
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।चन्दनं।।
धाँ अक्षत लिये खड़ा हूँ
मैं अक्ष-नत हिये खड़ा हूँ
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा
मैं मानूँ सब-कुछ अपना तुझे
तू अपना ले मुझे
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।अक्षतं।।
ले शिशु मन मैं खड़ा हूँ
साथ श्रृद्धा सुमन खड़ा हूँ
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा
मैं मानूँ सब-कुछ अपना तुझे
तू अपना ले मुझे
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।पुष्पं।।
चरु घृत लिये खड़ा हूँ
मैं गद-गद हिये खड़ा हूँ
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा
मैं मानूँ सब-कुछ अपना तुझे
तू अपना ले मुझे
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।नैवेद्यं।।
ज्योति लिये खड़ा हूँ
दृग्-मोति लिये खड़ा हूँ
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा
मैं मानूँ सब-कुछ अपना तुझे
तू अपना ले मुझे
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।दीपं।।
सुगंधी लिये खड़ा हूँ
भक्ति-अंधी लिये खड़ा हूँ
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा
मैं मानूँ सब-कुछ अपना तुझे
तू अपना ले मुझे
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।धूपं।।
फल थाल ले खड़ा हूँ
मैं कर ताल लिये खड़ा हूँ
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा
मैं मानूँ सब-कुछ अपना तुझे
तू अपना ले मुझे
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।फलं।।
द्रव राश ले खड़ा हूँ
मैं विश्वास लिये खड़ा हूँ
तू अपना ले मुझे,
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा
मैं मानूँ सब-कुछ अपना तुझे
तू अपना ले मुझे
हूँ मैं वगैर तेरे अधूरा ।।अर्घं।।
=हाईकू=
जादुई गुरु मुस्कान,
‘छु-आ’ बाँस सुरीली तान
जयमाला
रिश्ता पुराना वही याद दिलाना चाहते हम ।
रिश्ता बनाना ‘जि कोई नया न चाहते हम ।।
देखिये ना, भक्तों का उमड़ा सैलाब था
उस दिन
‘जि भगवन्
और देख मुझको मुस्कुरा जाना आपका
कुछ न कुछ तो रिश्ता जरूर था
वरना बेवजह कौन दिखलाता रास्ता
कुछ न कुछ तो रिश्ता जरूर था
रिश्ता बनाना ‘जि कोई नया न चाहते हम ।।
रिश्ता पुराना वही याद दिलाना चाहते हम ।
रिश्ता बनाना ‘जि कोई नया न चाहते हम ।।
देखिये ना पड़गाहन को उमड़ा सैलाब था
उस दिन
‘जि भगवन्
और सामने मेरे, हो जाना खडे़ आपका
कुछ न कुछ तो रिश्ता जरूर था
बरना बेवजह कौन कुशल-क्षेम पूछता
कुछ न कुछ तो रिश्ता जरूर था
रिश्ता बनाना ‘जि कोई नया न चाहते हम ।।
रिश्ता पुराना वही याद दिलाना चाहते हम ।
रिश्ता बनाना ‘जि कोई नया न चाहते हम ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
गुरु मित्र ही दूसरे,
थाम लेते भक्त जो गिरे
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