- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 846
किया वादा देने का साथ तुमनें
जब से
है फेरा मेरे सिर पर हाथ तुमनें
तब से
गुम कहीं थकान हुई
मेरी जिन्दगी आसान हुई
मैं जुड़ने लगा, बेजोड़ अदब से
किया वादा देने का साथ तुमनें,
जब से ।।स्थापना।।
मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ जल,
जब से
तब से,
हो चलीं लो, परहित आँखें सजल ।।जलं।।
मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ चन्दन,
जब से
तब से,
पा गया लो, महक चन्दन सी मन ।।चन्दनं।।
मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ अक्षत,
जब से
तब से,
हो चला लो, चित् शिव सुन्दर सत् ।।अक्षतं।।
मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ कुसुम,
जब से
तब से,
हो चली लो, वसुधा मुझे कुटुम ।।पुष्पं।।
मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ षट्-रस,
जब से
तब से,
हो चला लो, मुझको सम्यक् दरश ।।नैवेद्यं।।
मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ दीपक,
जब से
तब से,
हो चली लो, खड़ी यम, द्वार धी-बक ।।दीपं।।
मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ अगर,
जब से
तब से,
खा चली लो नज़र श्याही नज़र ।।धूपं।।
मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ फल,
जब से
तब से,
हो चला लो, जल से भिन्न कमल ।।फलं।।
मैं तेरे चरणों में, लाया हूँ अरघ,
जब से
तब से,
दिख चला लो, सामने शिव-सुरग ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
गुरु साहसी अपार,
लें तरंगें मन की मार
जयमाला
हुई साँझ, ‘के परिन्दे,
आ बैठे, लो फिर से दरख्त पे
एक अरसा हुआ, न रहमत तेरी,
बरसी इस अपने भक्त पे
हो चली क्या गुस्ताखी
दे भी दो माफी
अय ! भगवन् मेरे
मुझसे रूठे हो किसलिये
मैं रोऊँ न अपना रोना,
जो आ करके पास तेरे
क्या रूठे हो इसलिये
अय ! भगवन् मेरे
मैं रोऊँ न अपना रोना,
जो आ करके पास तेरे
हो चली क्या गुस्ताखी
दे भी दो माफी
अय ! भगवन् मेरे
मुझसे रूठे हो किसलिये
हुई साँझ, ‘के परिन्दे,
आ बैठे, लो फिर से दरख्त पे
एक अरसा हुआ, न रहमत तेरी,
बरसी इस अपने भक्त पे
हो चली क्या गुस्ताखी
दे भी दो माफी
अय ! भगवन् मेरे
मुझसे रूठे हो किसलिये
इस दुनिया में कोई,
न और मेरा, इक सिवा तेरे
क्या रूठे हो इसलिये
अय ! भगवन् मेरे
इस दुनिया में कोई,
न और मेरा, इक सिवा तेरे
हो चली क्या गुस्ताखी
दे भी दो माफी
अय ! भगवन् मेरे
मुझसे रूठे हो किसलिये
हुई साँझ, ‘के परिन्दे,
आ बैठे, लो फिर से दरख्त पे
एक अरसा हुआ, न रहमत तेरी,
बरसी इस अपने भक्त पे
हो चली क्या गुस्ताखी
दे भी दो माफी
अय ! भगवन् मेरे
मुझसे रूठे हो किसलिये
मेरी जुबां पे थिरके,
नाम बस तेरा जो साँझ-सबेरे
क्या रूठे हो इसलिये
अय ! भगवन् मेरे
मेरी जुबां पे थिरके,
नाम बस तेरा जो साँझ-सबेरे
हो चली क्या गुस्ताखी
दे भी दो माफी
अय ! भगवन् मेरे
मुझसे रूठे हो किसलिये
हुई साँझ, ‘के परिन्दे,
आ बैठे, लो फिर से दरख्त पे
एक अरसा हुआ, न रहमत तेरी,
बरसी इस अपने भक्त पे
हो चली क्या गुस्ताखी
दे भी दो माफी
अय ! भगवन् मेरे
मुझसे रूठे हो किसलिये
मैं जो तेरे आस-पास,
भँवरे सा लगाता रहता हूँ फेरे
क्या रूठे हो इसलिये
अय ! भगवन् मेरे
मैं जो तेरे आस-पास,
भँवरे सा लगाता रहता हूँ फेरे
हो चली क्या गुस्ताखी
दे भी दो माफी
अय ! भगवन् मेरे
मुझसे रूठे हो किसलिये
हुई साँझ, ‘के परिन्दे,
आ बैठे, लो फिर से दरख्त पे
एक अरसा हुआ, न रहमत तेरी,
बरसी इस अपने भक्त पे
हो चली क्या गुस्ताखी
दे भी दो माफी
अय ! भगवन् मेरे
मुझसे रूठे हो किसलिये
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
हमें अपना
‘जि गुरु जी अपना-भक्त लो बना
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