- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 834
मेरे आराध्य गुरु
तुम्हीं से शुरु
जीवन ये मेरा
तुम्हीं पे खतम
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।स्थापना।।
कंचन के, खुद से
कलशे भर जल से
भेंट रहा दृग्-नम
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा, तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।जलं।।
खुद से, कंचन के
घट चन्दन भर के
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।चन्दनं।।
पातर हाटक के
शालि धान हट के
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।अक्षतं।।
मंजुल मनहारी
गुल, नन्दन क्यारी
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।पुष्पं।।
अठपहरी घी की
चरु मिसरी नीकी
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।नैवेद्यं।।
दृग्-दृग् संजीवा
रत्न खचित दीवा
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।दीपं।।
खुश कोना कोना
‘मनु’ सुगंध सोना
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।धूपं।।
पातर रतनारे
फल-दल रस वाले
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।फलं।।
कुछ हटके छव ‘री
दिव्य द्रव्य सबरी
बरसाये रखना कृपा हरदम
अय ! मेरे आराध्य गुरु
जीवन ये मेरा तुम्हीं से शुरु,
तुम्हीं पे खतम ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
भक्तों की चिंता करते मिले गुरु जी,
ख्वाबों में भी
जयमाला
कौन पा रहा नहीं,
‘जि गुरु जी रस्ता आपसे
कौन सा रहा नही,
‘जि गुरु जी रिश्ता आपसे
जो जीवन ‘नौ’ दिया,
सो माँझी इक तुम्हीं
नव जीवन जो दिया,
सो माँ भी इक तुम्हीं
हो पिता तुम्हीं,
हमें बचा रहे जो पाप से
कौन सा रहा नही,
‘जि गुरु जी रिश्ता आपसे
कौन पा रहा नहीं,
‘जि गुरु जी रस्ता आपसे
कौन सा रहा नही,
‘जि गुरु जी रिश्ता आपसे
थमाया अरमाँ सो हो इक रहनुमा तुम्हीं
छुवाया आसमाँ सो हो इक बागबां इक तुम्हीं
छत्र-छाँव इक तुम्हीं,
हमें बचा रहे जो ताप से
जो जीवन ‘नौ’ दिया,
सो माँझी इक तुम्हीं
नव जीवन जो दिया,
सो माँ भी इक तुम्हीं
हो पिता तुम्हीं,
हमें बचा रहे जो पाप से
कौन सा रहा नही,
‘जि गुरु जी रिश्ता आपसे
कौन पा रहा नहीं,
‘जि गुरु जी रस्ता आपसे
कौन सा रहा नही,
‘जि गुरु जी रिश्ता आपसे
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
पहुँचते ही गुरु निकट,
जाते पाँसे पलट
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