- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 815
खींचे अपनी ओर रखना
यूँ ही थामे डोर रखना
है न कुछ और कहना
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।स्थापना।।
यूँ ही न आये दृग्-सजल
स्वर्ण घट भर के लाये जल
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।जलं।।
यूँ ही न आये दृग्-सजल
लाये चन्दन मलय-अचल
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।चन्दनं।।
यूँ ही न आये दृग्-सजल
लाये अक्षत धान धवल
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।अक्षतं।।
यूँ ही न आये दृग्-सजल
लाये मानस सरसि कँवल
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।पुष्पं।।
यूँ ही न आये दृग्-सजल
लाये नेवज नवल-नवल
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।नैवेद्यं।।
यूँ ही न आये दृग्-सजल
लाये दीप ज्योत अविचल
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।दीपं।।
यूँ ही न आये दृग्-सजल
लाये हट घट धूप अनल
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।धूपं।।
यूँ ही न आये दृग्-सजल
टोकरी भर के लाये फल
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।फलं।।
यूँ ही न आये दृग्-सजल
लाये मनहर द्रव्य सकल
सुनो ना, गुरु जी सुनो ना
है न कुछ और कहना
यूँ ही थामे डोर रखना
खींचे अपनी ओर रखना
है न कुछ और कहना ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
आ लगाते जै-कार
सांचा श्री गुरु का दरबार
जयमाला
गुरु जी की जिसपे पड़ नजर जाती है
जिन्दगी उसकी सँवर जाती है
अन्छुये और अधूरे
हो जाते हैं ख्वाब पूरे
सीप पाती जल स्वाती है
जिन्दगी उसकी सँवर जाती है
गुरु जी की जिसपे पड़ नजर जाती है
जिन्दगी उसकी सँवर जाती है
पा हवा का संग
उड़ जाती है पतंग
सुकून हो जाता साथी है
जिन्दगी उसकी सँवर जाती है
गुरु जी की जिसपे पड़ नजर जाती है
जिन्दगी उसकी सँवर जाती है
लाजमी वगैर मन्नत
मिले जमीं पे ही जन्नत
होती आजादी थाती है
जिन्दगी उसकी सँवर जाती है
गुरु जी की जिसपे पड़ नजर जाती है
जिन्दगी उसकी सँवर जाती है
सीप पाती जल स्वाती है
सुकून हो जाता साथी है
होती आजादी थाती है
जिन्दगी उसकी सँवर जाती है
गुरु जी की जिसपे पड़ नजर जाती है
जिन्दगी उसकी सँवर जाती है
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
पड़ते हम पैर हैं,
पड़ लेने दो पैर हमें
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