- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 805
भावी, वर्तमान तुहीं अतीत मेरा ।
शुरु तुम्हीं से, तुम्हीं से खत्म हर गीत मेरा ।।
रखना यूँ ही मुझे, अपने आस-पास ।
कहीं जाके फिर न आने वाला, अखीर श्वास,
बिन तेरे,
अय ! भगवन् मेरे
न हो जाये व्यतीत मेरा ।
शुरु तुम्हीं से, तुम्हीं से खत्म हर गीत मेरा
।।स्थापना।।
रखना ध्यान यूँ ही,
‘मेरा’
सिवाय तेरे, न कोई ।।जलं।।
मैं पतंग हूँ
हो तुम मेरी ड़ोर,
न देना छोड़ ।।चन्दनं।।
हो तुम मेरी जिन्दगानी,
मछली में तुम पानी ।।अक्षतं।।
‘गुल मैं’ सार्थ नाम,
खुशबू तुम,
ए ! मेरे राम ।।पुष्पं।।
वजूद मेरा है ही ना,
तुम बिना,
क्यूँ मेनू जीना ।।नैवेद्यं।।
हैं हम, सिर्फ जिसम,
रूह मेरी गुरु जी तुम ।।दीपं।।
मुझ पाँखी के पंख हो,
हूँ शून्य मैं,
तुम अंक हो ।।धूपं।।
तुम धार हो
म्हार पतवार हो,
तुम पार हो ।।फलं।।
दृग्-नम !
हाथ मेरे उकेरी, रेख जीवन तुम ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
हम तोड़ते रिश्ता,
गुरु तो खुला रखते रस्ता
जयमाला
जर्रा-सी रज-पाँव,
आपकी छत्र-छाँव
हृदय विशाल !
अय ! कलि गुपाल
‘कि जो पाऊँ,
तो मैं निहाल हो जाऊँ,
कभी घर आहार
नजर एक बार
मन प्रबाल !
अय ! कलि गुपाल
‘कि जो पाऊँ,
तो मैं निहाल हो जाऊँ,
जर्रा सी मुस्कान,
मग पड़े पग निशान,
सन्तन भाल !
अय ! कलि गुपाल
आप जो पाऊँ,
तो मैं निहाल हो जाऊँ,
इक मुलाकात,
सिर-माथ पर हाथ,
गुण गण माल !
अय ! कलि गुपाल
‘कि आप जो पाऊँ,
तो मैं निहाल हो जाऊँ,
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
सेवा श्री गुरु-देव,
काफी कुछ ला दे रख जेब
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