- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 803
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।स्थापना।।
नीर भर लाया गंगा घाट,
भिंटाऊँ गहरी श्रद्धा साथ,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।जलं।।
झार चन्दन मलयागिर ख्यात,
भिंटाऊँ घिस कर अपने हाथ,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।चन्दनं।।
शालि-धाँ अक्षत स्वर्ण परात,
भिंटाऊँ छव मुक्ताफल भाँत,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।अक्षतं।।
नमेरू सुन्दर पारी-जात,
भिंटाऊँ भाँत-भाँत गुल-पात,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।पुष्पं।।
याद रह जाने वाला स्वाद,
भिंटाऊँ चरु घृत पहरी-आठ,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।नैवेद्यं।।
स्वर्ण दीवा, करपूरी बात,
भिंटाऊँ ना इकाद लग पात,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।दीपं।।
दिव्य घट सुगंध दश इक साथ,
भिंटाऊँ पुलकित रोमिल गात,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।धूपं।।
रसीले फल ऋत-ऋत विख्यात,
भिंटाऊँ साथ प्रणव इक नाद,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।फलं।।
गंध फल गुल तण्डुल जल आद,
भिंटाऊँ जोड़ हाथ रख माथ,
एक फरियाद न और मुराद,
तुम मुझे रख लो अपने साथ
हमारे सर पे रख दो हाथ,
एक फरियाद न और मुराद ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
अनूप छाँव,
श्री गुरु ‘तरु’ छू,
छू धूप तनाव
जयमाला
हमनें तुम्हें हिचकियाँ दीं,
तुमनें हमें सिसकियाँ दीं,
अपने सपनों में
अपने अपनों में,
तुमने हमें,
ये ऐसे, कैसे रखा,
‘जि गुरु जी,
‘के एक भी न खत लिखा,
तुमने हमें,
तुम लौट के न फिर आये,
तुम्हारी याद,
जो आये तो,
लौट के न फिर जाये,
हमनें तुम्हें दिलो-जाँ दिये
तुमने हमें दिये आँसू ये,
अपने सपनों में
अपने अपनों में,
तुमने हमें,
ये ऐसे, कैसे रखा,
‘जि गुरु जी,
‘के एक भी न खत लिखा,
तुमने हमें,
तुमने पलट के भी न देखा,
ये निगाहें मेरीं,
देखती रही तुम्हें टकटकी लगा
हमनें तुम्हें हिचकिंयाँ दीं,
तुमनें हमें सिसकिंयाँ दीं,
अपने सपनों में
अपने अपनों में,
तुमने हमें,
ये ऐसे, कैसे रखा,
‘जि गुरु जी,
‘के एक भी न खत लिखा,
तुमने हमें,
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
दे आवाज,
‘जि रुँध चला गला,
आ भी जाओ भला
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