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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 792

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 792

तू खुशबू
मैं गुल हूँ
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।स्थापना।।

हेत समकित,
जल समर्पित,
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।जलं।।

हेत सुमरण,
भेंट चन्दन,
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।चन्दनं।।

शिव सुन्दर सत्
भेंटूँ अक्षत,
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।अक्षतं।।

हित जेय कुप्,
भेंटूँ पहुप,
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।पुष्पं।।

हित निरंजन,
भेंट व्यञ्जन,
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।नैवेद्यं।।

हित संबुध,
लौं अनबुझ,
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।दीपं।।

भेंटूँ अगर,
‘कि पहुँचूँ घर,
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।धूपं।।

सेत-शिव हित,
भेंट फल ऋत,
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।फलं।।

हेत अख जित,
अर्घ अर्पित,
चरणन तेरे,
भगवन् मेरे !
बिन तेरे,
भगवन् मेरे !
मैं रो दूँगा,
जाँ खो दूँगा,
मैं मछली, हैं जल तू
मैं गुल हूँ, तू खुशबू ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
साँप चाल से,
हैं अन्छुये गुरु जी,
खौफ़ काल से

जयमाला

तशरीफ़ लाता में रहता हूँ
हमेशा ही, आता मैं रहता हूँ
गुरु देव जी, द्वार तुम्हारे
भूल कर ही सही,
आ भी जाओ ‘ना’ कभी,
द्वार हमारे

नदिया का जो किनारा,
हाँ…हाँ…वहीं घर है हमारा,
कोई ज्यादा दूर भी नहीं,
भूल कर ही सही,
आ भी जाओ ‘ना’ कभी,
द्वार हमारे

घनी पीपल की छैय्याँ
रहे द्वारे खड़ी गैय्या,
हाँ…’हाँ…बस आ गया यही,
कोई ज्यादा दूर भी नहीं,
भूल कर ही सही,
आ भी जाओ ‘ना’ कभी,
द्वार हमारे

गुरु प्रतिक्षा लिखा द्वारे,
हम चन्दन, तुम वीर हमारे,
गैर न कोई अजनबी,
भूल कर ही सही,
आ भी जाओ ‘ना’ कभी,
द्वार हमारे

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
श्री गुरु नाम चाबी,
लो लगा हाथ ‘ना’ कामयाबी

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