- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 779
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।स्थापना।।
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
जल चढ़ाऊॅं दृग्-नम,
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।जलं।।
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
चन्दन चढ़ाऊॅं सुरम,
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।चन्दनं।।
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
भेंटूॅं अक्षत आप सम,
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।अक्षतं।।
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
भेंटूॅं वन-नन्दन कुसुम,
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।पुष्पं।।
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
चरु चढ़ाऊॅं मधुरम्
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।नैवेद्यं।।
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
भेंटूॅं दीप तले न तम,
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।दीपं।।
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
भेंटूॅं सुगंध दिव अगम,
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।धूपं।।
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
फल चढ़ाऊॅं दिव्य-द्रुम,
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।फलं।।
साथ श्रद्धा-सुमन,
भक्ति में हो के मगन,
भेंटूॅं अर्घ वसु न कम,
रहते थे नैन हमारे नम,
दिन-रैन हरदम,
रहते थे नैन हमारे नम,
थम ही गये,
आज थम ही गये,
आ मेरे द्वारे, तुम्हारे कदम,
जय जय गुरुवरम् ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
होता प्रभु के होने का अहसास,
गुरु के पास
जयमाला
‘जि गुरु जी,
भूल भुलाने की है, आदत तुम्हारी
भूल दुहराने की है, आदत हमारी
‘जि गुरु जी,
हम अमावस जैसे हैं
आप और माँ इक जैसे हैं
परमोपकारी
‘जि गुरु जी,
भूल भुलाने की है, आदत तुम्हारी
भूल दुहराने की है, आदत हमारी
‘जि गुरु जी,
हम पतझड़ जैसे हैं
आप और तरु इक जैसे हैं
पीर-परिहारी,
परमापकारी,
‘जि गुरु जी,
भूल भुलाने की है, आदत तुम्हारी
भूल दुहराने की है, आदत हमारी
‘जि गुरु जी,
हम काजर जैसे हैं
आप और गुल इक जैसे हैं
बलिहारी,
पीर-परिहारी,
परोपकारी,
‘जि गुरु जी,
भूल भुलाने की है, आदत तुम्हारी
भूल दुहराने की है, आदत हमारी
‘जि गुरु जी,
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
हाईकू
किसी का बुरा न सोचते गुरु जी,
दूजे प्रभु ही
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