- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 752
=हाईकू=
भरा गुरु ‘जी’ न अभी,
जीमने आ जाना कल भी ।।स्थापना।।
तुझे खुद से बढ़के पर-पीर,
सो भेंटूँ नीर ।।जलं।।
मेंटे तू सुन के और क्रन्दन,
सो भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।
चलते ‘और’ चलाते सत्पथ,
सो भेंटूँ अक्षत ।।अक्षतं।।
आपके वश में आपका मन,
सो भेंटूँ सुमन ।।पुष्पं।।
तिहारे वश में जो क्षुध् मरज,
सो भेंटूँ नेवज ।।नैवेद्यं।।
छाया न तुझ सी कल्प-विरख,
सो भेंटूँ दीपक ।।दीपं।।
कामयाबी न हाबी तेरे-सर,
सो भेंटूँ अगर ।।धूपं।।
तू रखता न बोझ सर-कल,
सो भेंटूँ भी फल ।।फलं।।
बहे जो गुरु आज्ञा रग-रग,
जो भेंटूँ अरघ ।।अर्घं।।
=हाईकू=
अलबेले हैं,
कभी,
पड़ें न गुरु जी,
झमेले में
जयमाला
ज्यों ही शब्द निकसे
गुरु जी के मुख से
हैं रहते नहीं अधूरे
होते ही होते है पूरे
लौट दरिया ‘कि पलट आये
चाहे दुनिया ही पलट जाये
आशीष मिले बड़ी मुश्किल से
गुरु जी ने मुख से
ज्यों ही शब्द निकसे
गुरु जी के मुख से
हैं रहते नहीं अधूरे
होते ही होते है पूरे
झूठ बोलते ही नहीं,
श्री गुरु जी क्योंकि
दो टूक बोलते ही नहीं
लौट दरिया ‘कि पलट आये
चाहे दुनिया ही पलट जाये
आशीष मिले बड़ी मुश्किल से
गुरु जी ने मुख से
ज्यों ही शब्द निकसे
गुरु जी के मुख से
हैं रहते नहीं अधूरे
होते ही होते है पूरे
चुगली खातें ही नहीं
श्री गुरु जी क्योंकि
निज प्रशंस नाते ही नहीं
लौट दरिया ‘कि पलट आये
चाहे दुनिया ही पलट जाये
आशीष मिले बड़ी मुश्किल से
गुरु जी ने मुख से
ज्यों ही शब्द निकसे
गुरु जी के मुख से
हैं रहते नहीं अधूरे
होते ही होते है पूरे
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
मैं आँखें खोलूँ,
और तुम दिखो,
‘जि कभी यूँ भी हो
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