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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 743

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 743

हाईकू
प्रभु,
न सुख ही, दें दुख भी,
पै,
दें गुरु सुख ही ।।स्थापना।।

जल चढ़ाऊँ,
लो सँभाल,
कहीं मैं गिर न जाऊँ ।।जलं।।

लो सँभाल,
ले फाँस वन क्रन्दन,
भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।

लो सँभाल,
मैं भटक न जाऊँ,
धाँ शालि चढ़ाऊँ ।।अक्षतं।।

लो सँभाल,
हो मेरे अकेले तुम,
भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।

लो सँभाल,
न आया चलना अभी,
भेंटूँ चरु घी ।।नैवेद्यं।।

लो सँभाल,
मैं अभी बालक ही हूँ,
दीपक भेंटूँ ।।दीपं।।

भेंटूँ सुगन्धी,
लो सँभाल,
मैं ठगा न जाऊँ कहीं ।।धूपं।।

लो सँभाल,
दृग् तरेरे गहल,
मैं भेंटूँ श्री फल ।।फलं।।

लो सँभाल,
मैं ठोकर न खा जाऊँ,
अर्घ चढ़ाऊँ ।।अर्घं।।

हाईकू
न ठुकराते किसी को,
‘गुरु’
सभी को अपनाते

जयमाला

है सुना, कौन न अपना तेरा
पूरा होगा क्या ? सपना मेरा
अ ‘जि कहें,
कुछ तो कहें गुरुदेव जी
पूरा होगा क्या ? सपना मेरा

बहुत दूर से हुआ बहुत दरस
करने अब आप चरणस्-परस
कह रहा मनुआ मेरा
पूरा होगा क्या ? सपन मेरा

दिया आहार दूसरों के यहाँ,
आहार अब कराने अपने यहाँ
कह रहा मनुआ मेरा
पूरा होगा क्या ? सपन मेरा

सुना दूजे गाँव जा आपको
अब सुनने अपने गाँव ला, आपको
कह रहा मनुआ मेरा
पूरा होगा क्या ? सपन मेरा

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
जखम हर,
दें भर,
मरहम-से गुरुवर

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