- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 733
हाईकू
उठे श्री गुरु नजर,
‘कि अंधेरा छू लगा ‘पर’ ।।स्थापना।।
तुम रो देते, सुन पर-पीर,
सो भेंटूँ दृग्-नीर ।।जलं।।
तुमने छोड़ा ‘स…हारा’ कह,
भेंटूँ सो-गंध यह ।।चन्दनं।।
तुम रखते न नाक पे भार,
सो भेंटूँ धाँ न्यार ।।अक्षतं।।
तुमने छोड़ी ‘वास…ना’ कह,
भेंटूँ सो पुष्प यह ।।पुष्पं।।
विद् तुम्हें,
कहे क्या ‘दवा…खाना’,
भेंटूँ सो भोग नाना ।।नैवेद्यं।।
न याद, तुम्हें चुगली स्वाद,
भेंटूँ सो दीप-पाँत ।।दीपं।।
तुम्हें सदा दे दिखाई जो चिद्रूप,
सो भेंटूँ धूप ।।धूपं।।
तुम्हें रिझाते रहते वेला-तेला,
सो भेंटूँ भेला ।।फलं।।
करते चर्चा आपकी देव स्वर्ग,
सो भेंटूँ अर्घ ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
बहुत अच्छे से,
ढ़ाई अक्षर से रूबरू गुरु
जयमाला
तेरी करुणा भरी नजर
चरणा तेरे अपने घर पर
मैं जब से पा गया हूँ
करीब,
चरणन तेरे,
अय ! भगवन् मेरे
मैं जब से आ गया हूँ
इक अजीबो-गरीब,
दिल में ठण्डक-सी पा गया हूँ
तेरी वगैर स्वारथ छाँव
जन्नत से बढ़के तेरी रज पाँव
मैं जब से पा गया हूँ
करीब,
चरणन तेरे,
अय ! भगवन् मेरे
मैं जब से आ गया हूँ
इक अजीबो-गरीब,
दिल में ठण्डक-सी पा गया हूँ
तेरी मुस्काने-निधी
न सपने ही
सामने ही तेरी सन्निधि
मैं जब से पा गया हूँ
करीब,
चरणन तेरे,
अय ! भगवन् मेरे
मैं जब से आ गया हूँ
इक अजीबो-गरीब,
दिल में ठण्डक-सी पा गया हूँ
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
करिश्मा,
मुट्ठी जिया,
आप ने,
ली जो दुनिया समा
Sharing is caring!