परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 74
तज शरण पाप की ।
रज चरण आपकी ।।
पा गया जो मन मेरा ।
लो बदल गया जीवन मेरा ।।
तज डगर, पाप की ।
इक नजर आपकी ।।
पा गया जो मन मेरा ।
लो बदल गया जीवन मेरा ।।
जय गुरु देव, जय गुरु देव, जय गुरु देव ।
यूँ हि बरसाये रखना कृपा सदैव ।।
।।स्थापना।।
भला किसी का सोच सकें हा !
इतना समय कहाँ ।
बाँट सकें दुख दर्द किसी का,
इतना समय कहाँ ॥
हाय ! प्रपंचों में ही सारा,
समय मुफत जाता ।
होना हमें आप सा कीजो,
कृपा जगत् त्राता ! जलं।।
क्रोध हमारी नासिकाग्र का,
आभूषण स्वामी ।
कहे कहाँ तक, नहीं हमारे,
अन्दर क्या खामी ॥
दोष कोष यूँ जीवन नाहक,
है निकला जाता ।
होना हमें आप सा कीजो ,
कृपा जगत् त्राता ! चन्दनं।।
मान-बढ़ाई की खातिर हम,
काम नेक करते ।
स्वार्थ सधे ना जहाँ वहाँ पे,
कदम कहाँ धरते ॥
यूँ संकुचित मान-सिकता में,
भव बीता जाता ।
होना हमें आप सा कीजो,
कृपा जगत् त्राता ! अक्षतं।।
दस्तक बिना पाप आ धमके,
अंतरंग ऐसे ।
घर दीमक आ ठहर चले हा !
दुठ भुजंग जैसे ।।
काग उड़ाने में यूँ नर भव,
रत्न व्यर्थ जाता ।
होना हमें आप सा कीजो ,
कृपा जगत् त्राता ! पुष्पं।।
कालिख धर्म आइने में कब,
अपनी देखी है ।
कैसे आँख मिलाये कभी न,
कीनी नेकी है ।
हन्त ! गवारन वृत्ति भाँति यूँ,
स्वर्णिम भव जाता ।
होना हमें आप सा कीजो,
कृपा जगत् त्राता ! नैवेद्यं।।
प्रेम-प्रेम चिल्लाते हा ! हम,
ग्राहक नफरत के ।
काबिल ना बन सके आज तक,
पुण्य इबादत के ॥
विमोहान्ध यूँ निर्जन रोते,
समय हाथ जाता ।
होना हमें आप सा कीजो,
कृपा जगत् त्राता ! दीप॑।।
स्वप्न बहुत देखे पर आत्म न,
देखा सपनों में ।
जिसे न देखा स्वप्नन कैसे,
आये अपनों में ।
आत्म दर्श बिन यूँ नर भव,
कौड़ी बदले जाता ।
होना हमें आप सा कीजो,
कृपा जगत् त्राता ! धूपं।।
नहीं केकड़े आगे, उनकी,
कला सीख लीनी ।
श्वान रह गये पीछे, उनकी,
गहल छीन लीनी ॥
भव मानस बगुला भक्ति में,
हाय ! व्यर्थ जाता ।
होना हमें आप सा कीजो,
कृपा जगत् त्राता ! फल॑।।
आदत हमें पैर चादर,
बाहर फैलाने की ।
कर प्रतिदिन निन्दन गर्हण,
गज भाँति नहाने की ।
गगन पुष्प चुनते यूँ नर भव,
हा ! नाहक जाता ।
होना हमें आप सा कीजो,
कृपा जगत् त्राता ! अर्घं।।
“दोहा”
अन्तरंग जिनका अहो,
करुणा का भण्डार ।
गुरु विद्या सविनय तिन्हें,
वन्दन बारम्बार ।।
“जयमाला”
पुरु अनुकरण ।
गुरुवर चरण ।।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
आशा किरण |
तट वैतरण ।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
अमृतर वयन ।
नमतर नयन ।।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
पुरु अनुकरण ।
गुरुवर चरण ।।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
आशा किरण |
तट वैतरण ।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
तव-मम हरण ।
तारण-तरण ।।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
पुरु अनुकरण ।
गुरुवर चरण ।।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
आशा किरण |
तट वैतरण ।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
अवलम्ब धन !
अन्तिम मरण ।।
पुरु अनुकरण ।
गुरुवर चरण ।।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
आशा किरण |
तट वैतरण ।
गुरुवर नमन, गुरुवर नमन
॥ जयमाला पूर्णार्घं ।।
“दोहा”
यही भावना उर मिरे,
तुम कीजिओ निवास ।
जगह जरा दे दीजिओ,
अपने चरणन पास ॥
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