- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 730
==हाईकू==
तर सबके घर,
घन सजल, श्री गुरुवर ।।स्थापना।।
जजूँ ले जल-हाथ,
मन ‘कि लगे मानने बात ।।जलं।।
जजूँ चन्दन ले हाथ,
पा ‘कि सकूँ आपका साथ ।।चन्दनं।।
जजूँ अक्षत साथ,
पद-अक्षत करने हाथ ।।अक्षतं।।
जजूँ ले पुष्प हाथ,
लाने जीवन में नौ-प्रभात ।।पुष्पं।।
जजूँ ले चरु भाँत-भाँत,
करने क्षुधा-विघात ।।नैवेद्यं।।
जजूँ ले दिया हाथ,
उकेरने धी-लकीर माथ ।।दीपं।।
जजूँ ले धूप पात्र,
रिझाने गात संज्ञान मात्र ।।धूपं।।
जजूँ ले फल परात,
विघटाने खिल-प्रमाद ।।फलं।।
जजूँ ले अर्घ-परात,
हो सकूँ ‘कि पवर्ग पात्र ।।अर्घ्यं।।
==हाईकू==
फेरें आ गुरु नाम माला,
‘जि होने ‘कि नाम-वाला
।।जयमाला।।
पलक भी
जो झलक तेरी
न पाते हैं
तो भर आते हैं
मेरे ये नैन
कुछ तो करो
‘जि गुरु जी अहो
‘कि पा जायें चैन
मेरे ये नैन
लो बना पीछी ही,
जिसे हाथों मे लिये रहते हो
लो बना पोथी ही,
जिससे आँखें लगाये रहते हो
दिन-रैन
‘कि पा जायें चैन
मेरे ये नैन
ले बना अपने वचना,
अमृत जिससे झिरता है
लो बना, सपना अपना,
परहित जिसमें विचरता है
दिन-रैन
‘कि पा जायें चैन
मेरे ये नैन
लो बना रतन,
न रहते हो, जिनसे जुदा कभी
लो बना जतन,
न बनते बिना जिसके खुदा कभी
जिन-वैन
‘कि पा जायें चैन
मेरे ये नैन
पलक भी
जो झलक तेरी
न पाते हैं
तो भर आते हैं
मेरे ये नैन
कुछ तो करो
‘जि गुरु जी अहो
‘कि पा जायें चैन
मेरे ये नैन
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
==हाईकू==
दें गुरु जी वो ही रास्ता,
मंजिल से जिसका वास्ता
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