- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 728
=हाईकू=
आप आयेंगे,
न थी सिर्फ आश,
था पूरा विश्वास,
भक्ति शबरी की,
‘जी’ खींच लाई थी,
राम को पास,
वीर को पास,
भक्ति चन्दना की,
थी खींच लाई ही,
आप आयेंगे
न थी सिर्फ आश,
था पूरा विश्वास ।।स्थापना।।
धूल अपने पाँवों की लो बना,
दृग्-जल अपना ।।जलं।।
पाने, जितना पाई चन्दना,
भेंट लाई चन्दना ।।चन्दनं।।
मत करना मना,
सुनो ना,
शाली धाँ लो अपना ।।अक्षतं।।
मेरा कहा,
न करो अनसुना,
लो पुष्प अपना ।।पुष्पं।।
नेह तुमसे घना,
ये नैवेद लो बना अपना ।।नैवेद्यं।।
थिरके सीप अँगना,
दीप मेरा भी लो अपना ।।दीपं।।
ए ! माँ श्री मन्त नन्दना,
सुर’भी’ ये भी लो अपना ।।धूपं।।
दृष्टि उठा दो एक बार पुन:
न और सपना ।।फलं।।
आगे भी, कृपा बरसाये रखना,
यूँ ही अपना ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
गुरु चरणों से होके गुजरता,
जन्नते रस्ता
।। जयमाला।।
तेरी शरण में आके,
रज चरण तेरी पाके,
जो अब-तक न हाथ आया,
वो सुकून मैनें पाया
अपना तुझे बना के
सपनों में तुझे पाके
जो अब-तक न हाथ आया,
वो सुकून मैनें पाया
तिरे दर पे सर झुका के
तिरा हाथ सर पे पाके
जो अब-तक न हाथ आया,
वो सुकून मैनें पाया
तुझे दोल दृग् झुला के
तिरे बोल अमृत पाके
जो अब-तक न हाथ आया,
वो सुकून मैनें पाया
अञ्जुली में ग्रास लाके
तेरी नवधा भक्ति पाके
जो अब-तक न हाथ आया,
वो सुकून मैनें पाया
नजराना नजर पाके
तेरा, तराना गुन गुनाके
जो अब-तक न हाथ आया,
वो सुकून मैनें पाया
तेरी शरण में आके,
रज चरण तेरी पाके,
जो अब-तक न हाथ आया,
वो सुकून मैनें पाया
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
गुरु से होते ही रूबरू,
दिल से हो गुरूर छू
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