- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 719
=हाईकू=
गुरु हूबहू माँ,
ले गोद में,
जो, दें छुवा आसमाँ ।।स्थापना।।
यूँ ही,
रोज ही,
पाने गंधादक,
मैं भेंटूँ उदक ।।जलं।।
यूँ ही,
रोज ही
पाने आप दर्शन,
भेंटूँ चन्दन ।।चन्दनं।।
यूँ ही,
रोज ही,
राख लेना पत,
मैं भेंटूँ अक्षत ।।अक्षतं।।
यूँ ही,
रोज ही,
पाने मुस्कान,
भेंटूँ पुष्प बगान ।।पुष्पं।।
यूँ ही,
रोज ही,
हों पूरे अरमाँ,
मैं भेंटूँ पकवाँ ।।नैवेद्यं।।
यूँ ही,
रोज ही,
‘मना पाने’,
‘दीवाली’
लाया भिंटाने ।।दीपं।।
यूँ ही,
रोज ही,
मिला पाने विधी,
मैं भेंटूँ सुगंधी ।।धूपं।।
यूँ ही,
रोज ही,
खुशी-चेहरे खेले
‘कि भेंटूँ भेले ।।फलं।।
यूँ ही,
रोज ही,
जाऊँ पहुँच स्वर्ग,
‘कि भेंटूँ अर्घ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
जन्नते-सुकूँ वहाँ है,
आशीष श्री गुरु जहाँ है
।।जयमाला।।
कभी रुलाते नहीं,
कभी भुलाते नहीं
भक्त वत्सल गुरु जी कहाते तभी
दिल दुखाते नहीं
कभी रुलाते नहीं,
कभी भुलाते नहीं
भक्त वत्सल गुरु जी कहाते तभी
काली घनी जब भी छायें घटायें
बनके हवा, गुरु जी आ विघटा जायें
आने में देरी न लगाते कभी
भक्त वत्सल गुरु जी कहाते तभी
दिल दुखाते नहीं
कभी रुलाते नहीं,
कभी भुलाते नहीं
भक्त वत्सल गुरु जी कहाते तभी
भान आसमान चढ़ के जब भी तमतमाया
आ किया घना सिर में गुरु जी ने साया
नहीं कहा कभी ‘कि ठहरो आते अभी
भक्त वत्सल गुरु जी कहाते तभी
दिल दुखाते नहीं
कभी रुलाते नहीं,
कभी भुलाते नहीं
भक्त वत्सल गुरु जी कहाते तभी
आंधी और तूफानों ने जब भी कहर ढाये
करीब-दीव गुरु जी बन के ओट नजर आये
आस पास ही रहे न दूर जाते कहीं
भक्त वत्सल गुरु जी कहाते तभी
दिल दुखाते नहीं
कभी रुलाते नहीं,
कभी भुलाते नहीं
भक्त वत्सल गुरु जी कहाते तभी
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
*हाईकू*
होता छू वन-रुदन,
छूते ही श्री गुरु चरण
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