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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 716

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 716

“हाईकू”
गुरु
शगुन हैं,
दीवाली का दिन है,
फागुन हैं ।।स्थापना।।

भेंटूँ दृग् नीर,
लघु नन्दन वीर !
अय ! गभीर ।।जलं।।

भेंटूँ चन्दन,
भंजन भौ-क्रन्दन !
ए ! निरंजन ।।चन्दनं।।

भेंटूँ धाँ न्यार,
अमंगलहार !
ए ! मंगलकार ।।अक्षतं।।

भेंटूँ सुमन,
धनी मुस्कान धन !
अय ! शगुन ।।पुष्पं।।

भेंटूँ नेवज,
निराकुल सहज !
औ’ रेखा-गज ।।नैवेद्यं।।

भेंटूँ दीप,
ए ! समोति सीप !
गुरु पाँव समीप ।।दीपं।।

भेंटूँ सुगंध,
निमग्न सरानन्द !
अय ! निष्पन्द ।।धूपं।।

भेंटूँ श्री फल,
जन्म ‘मानौ’ सफल !
ए ! दृग् सजल ।।फलं।।

भेंटूँ अरघ,
तर-करुणा-डग !
अय ! सजग ।।अर्घ्यं।।

“हाईकू”
था माँ का ‘काज’,
गिरने पे उठाना
गुरु का आज

।।जयमाला।।

होने को है मेरी आँख नम
अब न सह पायेंगे हम
ये दूरिंयाँ
तन्हाईंयाँ
ढ़ाने लगीं हैं सितम

ये मिटा के फासले
रख मुझे अपने आस-पास ले
भुला के शिकवे-गिले

बिन तेरे
अय ! भगवन् मेरे
अब न रह पायेंगे हम
अब न सह पायेंगे हम
ये दूरिंयाँ
तन्हाईंयाँ
ढ़ाने लगीं हैं सितम

तुम मुझे हो चले हो जरूरी,
जरूरी मृग के लिये, न जितनी कस्तूरी
पतझड़ मैं,
अय ! सावन मेरे
बिन तेरे
अय ! भगवन् मेरे
अब न रह पायेंगे हम

तुम मुझे हो चले हो जरूरी,
जरूरी न जितने ‘के काले-काले मेघा मयूरी
तुम मुझे हो चले हो जरूरी,
जरूरी मृग के लिये, न जितनी कस्तूरी
पतझड़ मैं,
अय ! सावन मेरे
बिन तेरे
अय ! भगवन् मेरे
अब न रह पायेंगे हम

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

“हाईकू”
ले लो शरण में,
‘जि और कुछ न चाहिये हमें

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