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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 712

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 712

=हाईकू=
छवि माफिक भगवन्त
किसकी सिवाय सन्त ।।स्थापना।।

भू-सदलगा उद्धारक,
मैं भेंटूँ गंगा उदक ।।जलं।।

पून शरद अवतार !
मैं भेंटूँ चन्दन धार ।।चन्दनं।।

चर्चित कृति मूक-माटी कर्तार !
भेंटूँ धाँ न्यार ।।अक्षतं।।

हतकरघा ललाट कुमकुम !
भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।

चल-चरखा नव जीवन-दाँ !
मैं भेंटूँ पकवाँ ।।नैवेद्यं।।

नभ-प्रतिभा-स्थली डोर,
मैं भेंटूँ ज्योत बेजोड़ ।।दीपं।।

गोशाला, दुग्ध-शान्ति धारा आश,
मैं भेंटूँ सुवास ।।धूपं।।

गृह-उद्योग पूरी-मैत्री संबल,
भेंटूँ श्री फल ।।फलं।।

संस्थाँ पूर्णायु जीवन-रेख,
भेंटूँ मैं द्रव्य नेक ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
चश्मा उतारें,
फिर निहारें,
गुरु जी !
आँख तीजी

।।जयमाला।।

दे बता मिरा तू कौन है
मेरे देवता ! क्यूँ मौन है

तेरे चरणों में,
जिन्दगी बिताने का मन करता है
तेरे चरणों में,
हर खुशी लुटाने का मन करता है
दे पता, मेरा तू कौन है
दे बता मिरा तू कौन है
मेरे देवता ! क्यूँ मौन है

तेरे चरणों में,
बन चन्दन ढुल जाने का मन करता है
तेरे चरणों में,
बन सुमन चढ़ जाने को मन करता है
दे पता, मेरा तू कौन है
दे बता मिरा तू कौन है
मेरे देवता ! क्यूँ मौन है

तिरे चरणों में,
गिले-शिकवे गलाने का मन करता है
तिरे चरणों में,
गले सन्मृत्यु लगाने का मन करता है
दे पता, मेरा तू कौन है
दे बता मिरा तू कौन है
मेरे देवता ! क्यूँ मौन है

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
दिखने लगे द्यु-सदन,
छूते ही गुरु-चरण

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