- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 711
=हाईकू=
डोर शबरी थामी,
लो थाम और हमरी स्वामी ।।स्थापना।।
दृग् धार छोड़ी,
पा कृपा आप बाँस आलाप छेड़ी ।।जलं।।
कुंकुम तुम धूली पाँवन,
भेंटूँ सो गंध-बावन ।।चन्दनं।।
तुमने छुआ ‘अन’ मिश्री हुआ,
सो भेंटूँ शाली धाँ ।।अक्षतं।।
बढ़े दाम क्या पत्थर बैठे तुम,
भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।
भेंटूँ नैवेद्य घृत,
छुआ ‘आप’ ‘कि हुआ अमृत ।।नैवेद्यं।।
तेरे चरण छू के कंकर मोती,
सो भेंटूँ ज्योति ।।दीपं।।
तुम चरण-धूल चन्दन सी,
सो भेंटूँ सुगंधी ।।धूपं।।
तूने दृष्टि क्या ‘डाली’ दीवाली,
भेंटूँ श्रीफल थाली ।।फलं।।
शुक्रिया,
अर्घ भेंटूँ,
दिया ‘कि हाथ दोनों समेटूँ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
रखता कभी न प्यासा,
जिया गुरु हूबहू माँ सा
।।जयमाला।।
आँखें तरेरे,
अंतस्-अंधेरे
दे रोशनी दो भगवान् मेरे
चूँमे कदम तो कैसे कामयाबी
पाँचों सभी के सभी पाप हावी
और हम अकेले,
भगवान् मेरे
आँखें तरेरे,
अंतस्-अंधेरे
दे रोशनी दो भगवान् मेरे
चूँगे कदम तो कैसे कामयाबी
कषायें सभी चार की चार हावी
और हम अकेले,
भगवान् मेरे
आँखें तरेरे,
अंतस्-अंधेरे
दे रोशनी दो भगवान् मेरे
चूँमे कदम तो कैसे कामयाबी
मिल दोनों ही रागरु-द्वेष हावी
और हम अकेले,
भगवान् मेरे
आँखें तरेरे,
अंतस्-अंधेरे
दे रोशनी दो भगवान् मेरे
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
हैं मूरत माँ दूजी,
करते जाते क्षमा गुरु जी !
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