- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 705
=हाईकू=
करें गुरु जी जिसकी रक्षा,
उसे डर किसका ।।स्थापना।।
निर्मल,
तेरे चरणों में भगवन्,
भेंटूँ दृग्-जल ।।जलं।।
सानन्द,
तेरे चरणों में भगवन्,
चढ़ाऊँ गंध ।।चन्दनं।।
ले श्रद्धा,
तेरे चरणों में भगवन्,
भेंटूँ शालि-धाँ ।।अक्षतं।।
दृग् नम,
तेरे चरणों में भगवन्,
भेंटूँ कुसुम ।।पुष्पं।।
सहज,
तेरे चरणों में भगवन्,
भेंटूँ नेवज ।।नैवेद्यं।।
सदीव,
तेरे चरणों में भगवन्,
चढ़ाऊँ दीव ।।दीपं।।
अनूप,
तेरे चरणों में भगवन्,
चढ़ाऊँ धूप ।।धूपं।।
‘अकेले’
तेरे चरणों में भगवन्,
चढ़ाऊँ भेले ।।फलं।।
सजग,
तेरे चरणों में भगवन्,
भेंटूँ अरघ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
निगाहें,
तकें राहें,
‘कि गुरुदेव कब आओगे
।।जयमाला।।
मुझे देख उलझन में
गुरु जी आ गये छिन में
छू न पाये भू,
मेरे आँसू
जय जय, जयतु जय श्री गुरु
माँकी गोदी जैसे
मकर मोती जैसे
अनुझ ज्योती जैसे
गुरु जी खुद जैसे हूबहू
जय जय, जयतु जय श्री गुरु
काकी, काकू जैसे
पाछी वायू जैसे
चिराग जादू जैसे
गुरु जी खुद जैसे हूबहू
जय जय, जयतु जय श्री गुरु
भँवर नैय्या जैसे
वृक्ष छैय्याँ जैसे
ध्रुव तरैय्या जैसे
गुरु जी खुद जैसे हूबहू
जय जय, जयतु जय श्री गुरु
गुरु जी आ गये छिन में
मुझे देख उलझन में
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
‘जि गुरुवर,
‘कि जाऊँ मैं भी’तर
दीजिये वर
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