- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 701
=हाईकू=
हैं पाते नही चैन,
तब तलक, ये मेरे नैन ।
झपाये बिन पलक
पा लेते न तेरी झलक ।।स्थापना।।
भेंटूँ उदक,
पाऊँ घने-घने यूँ ही गन्धोदक ।।जलं।।
घने-घने यूँ ही गन्धोदक पाऊँ,
गंध भिंटाऊँ ।।चन्दनं।।
घने-घने यूँ ही गन्धोदक पाने,
भेंटूँ धाँ दाने ।।अक्षतं।।
भेंटूँ सुमन,
पाने श्री गन्धोदक यूँ ही सघन ।।पुष्पं।।
पाने सघन, यूँ ही चरण-रज,
भेंटूँ नेवज ।।नैवेद्यं।।
दीवा भेंटूँ
यूँ ही घना भक्ति नौ-धा पुण्य समेटूँ ।।दीपं।।
धूप खेऊँ,
यूँ ही घनी-घनी यादें बटोर लेऊँ ।।धूपं।।
घना-घना यूँ ही गंधोदक मिले,
भेंटूँ भेले ।।फलं।।
हो यूँ ही कृपा की बरसात,
भेंटूँ जल फलाद ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
छलिया जग से निराले हो,
तुम भोले-भाले हो
।।जयमाला।।
सुन, छू पाऊँ तुझे
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
सुन तू पाये मुझे
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
क्योंकि बिन तिरे, न रह पायेंगे
तड़फ तड़फ मछली से,
जल बिना मर जायेंगें
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
सुन, छू पाऊँ तुझे
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
सुन तू पाये मुझे
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
क्योंकि बिन तिरे, न रह पायेंगे
लहु लथ-पथ, तितली से,
पर बिना गिर जायेंगें
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
सुन, छू पाऊँ तुझे
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
सुन तू पाये मुझे
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
क्योंकि बिन तिरे, न रह पायेंगे
दृग् तरबतर कली जैसे
जड़ बिना झर जायेंगें
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
सुन, छू पाऊँ तुझे
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
सुन तू पाये मुझे
जाना ‘कि इतनी ही दूर मुझसे
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
जीने के लिये है काफी भगवान्
दी आप मुस्कान
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