- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 682
=हाईकू=
बस, अंगुली श्री गुरु पकड़ी,
‘कि बनी बिगड़ी ।।स्थापना।।
जल चढ़ाऊँ,
भारी मनवा,
बना ‘कि हल्का पाऊँ ।।जलं।।
गंध चढ़ाऊँ,
उलझा मन,
बना उजला पाऊँ ।।चन्दनं।।
सुधाँ चढ़ाऊँ,
पामर मन,
बना पावन पाऊँ ।।अक्षतं।।
पुष्प चढ़ाऊँ,
गुमानी मन,
बना सद्ध्यानी पाऊँ ।।पुष्पं।।
चरु चढ़ाऊँ,
आलसी मन,
बना साहसी पाऊँ ।।नैवेद्यं।।
दीप चढ़ाऊँ,
औगुनी मन,
बना ‘स्व-धनी पाऊँ ।।दीपं।।
धूप चढ़ाऊँ,
चाकर मन,
बना ठाकुर पाऊँ ।।धूपं।।
फल चढ़ाऊँ,
चपल मन,
बना निश्छल पाऊँ ।।फलं।।
अर्घ चढ़ाऊँ,
विकल मन,
बना सहज पाऊँ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
गुरुवर ‘जी’ बेचैन,
तर देखे क्या पर-नैन
जयमाला
फिर से पड़गाहन चाहिये
बहुत दिन हुये,
तुम चरण छुये
‘जि गुरु जी,
आ आँगन जाइये,
फिर से पड़गाहन चाहिये
पा गई देखो सब शबरी
पा गई चन्दन भी सब ही
ये देखो ना, बड़ीं-बड़ीं
अश्रु-बूँदें गिरीं पड़ीं
बहुत दिन हुये
तुम चरण छुये
‘जि गुरु जी,
आ आँगन जाइये,
फिर से पड़गाहन चाहिये
बाजे घर उसके शहनाई
साजे घर इसका, उस घाई
ये देखो न घड़ी-घड़ी
लगी अश्रुओं की झड़ी
ये देखो ना, बड़ीं-बड़ीं
अश्रु-बूँदें गिरीं पड़ीं
बहुत दिन हुये
तुम चरण छुये
‘जि गुरु जी,
आ आँगन जाइये,
फिर से पड़गाहन चाहिये
मन इसका छुये गगन
मन उसका हुआ मगन
ये देखो न घड़ी-घड़ी
लगी अश्रुओं की झड़ी
ये देखो ना, बड़ीं-बड़ीं
अश्रु-बूँदें गिरीं पड़ीं
बहुत दिन हुये
तुम चरण छुये
‘जि गुरु जी,
आ आँगन जाइये,
फिर से पड़गाहन चाहिये
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
‘कि सपन,
यूँ-ही लगा रहे गुरु सेवा में मन
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