- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 677
=हाईकू=
डराते,
और सिन्धु,
पै विद्या-सिन्धु डर भगाते ।।स्थापना।।
दृग्-जल करूँ अर्पण,
‘कि आप सा छुऊँ गगन ।।जलं।।
चन्दन करूँ अर्पण,
‘कि आप सा रहूँ मगन ।।चन्दनं।।
अक्षत करूँ अर्पण,
‘कि आप सा खोऊँ भ्रमण ।।अक्षतं।।
द्यु-पुष्प करूँ अर्पण,
‘कि आप सा होऊँ सुमन ।।पुष्पं।।
नैवज करूँ अर्पण,
‘कि आप सा रोऊँ न वन ।।नैवेद्यं।।
दीपिका करूँ अर्पण,
‘कि आप सा रमूँ सदन ।।दीपं।।
सुगंध करूँ अर्पण,
‘कि आप सँभालूँ-रण ।।धूपं।।
श्री फल करूँ अर्पण,
‘कि आप सा मैं पाऊँ वन ।।फलं।।
सरब करूँ अर्पण,
‘कि आप सा होऊँ दर्पण ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
नापें न गुरु जी दलदल,
दोनों पैरों के बल
जयमाला
जिनके ऊपर
क्या इक नजर
गुरु जी ने डाल दी
है उनकी चाँदी चाँदी
टूटी गहल अनादि
थमथमी विकल्प आंधी
न अब मनुआ अपराधी
है उनकी चाँदी चाँदी
गुम मिथ्यात्व उपाधि
नदारद आधि व्याधि
परिणति सीधी-सादी
है उनकी चाँदी चाँदी
हाथ उनके समाधी,
मिली उनको आजादी
उनकी मुक्ति शहजादी
है उनकी चाँदी चाँदी
जिनके ऊपर
क्या इक नजर
गुरु जी ने डाल दी
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
प्रार्थना निशि-दीस,
पा पाऊँ यूँ ही आप आशीष
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