- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 673
=हाईकू=
गरल वाले
‘और सागर’
विद्या सरल न्यारे ।।स्थापना।।
पाऊँ ‘कि रज चरण,
कम् गंगज करूँ अर्पण ।।जलं।।
पाऊँ ‘कि रज चरण,
मलयज करूँ अर्पण ।।चन्दनं।।
पाऊँ ‘कि रज चरण,
धाँ विरज करूँ अर्पण ।।अक्षतं।।
पाऊँ ‘कि रज चरण,
विटपज करूँ अर्पण ।। पुष्पं।।
पाऊँ ‘कि रज चरण,
घी नैवज करूँ अर्पण ।।नैवेद्यं।।
पाऊँ ‘कि रज चरण,
करूँ दीप स्रज अर्पण ।।दीपं।।
पाऊँ ‘कि रज चरण,
चन्दनज करूँ अर्पण ।।धूपं।।
पाऊँ ‘कि रज चरण,
पादपज करूँ अर्पण ।।फलं।।
पाऊँ ‘कि रज चरण,
द्रव्य पुञ्ज करूँ अर्पण ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
अगूठा, गुरु-दक्षिणा ले,
सिखायें पैर अंगूठे
जयमाला
कह रहीं लकीरें हाथ की
‘जि यही
कह रही लकीरें माथ की
गुरु से होगा मिलन
वो आने वाला ही क्षण,
‘कि होगा गुरु से मिलन
टाले टलेगा न जोग
होके रहेगा संजोग
वो आने वाला ही क्षण,
‘कि होगा गुरु से मिलन
कह रहीं लकीरें हाथ की
‘जि यही
कह रही लकीरें माथ की
गुरु से होगा मिलन
वो आने वाला ही क्षण,
‘कि होगा गुरु से मिलन
दाँये से बाँये वो
जाये हिरणा देखो
वो आने वाला ही क्षण,
‘कि होगा गुरु से मिलन
कह रहीं लकीरें हाथ की
‘जि यही
कह रही लकीरें माथ की
गुरु से होगा मिलन
वो आने वाला ही क्षण,
‘कि होगा गुरु से मिलन
पुण्य उदय आ गया
पाप उदय, गा गया
वो आने वाला ही क्षण,
‘कि होगा गुरु से मिलन
कह रहीं लकीरें हाथ की
‘जि यही
कह रही लकीरें माथ की
गुरु से होगा मिलन
वो आने वाला ही क्षण,
‘कि होगा गुरु से मिलन
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
अजनबी था,
जो बिठा अपने में लिया,
शुक्रिया
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