- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 654
हाईकू
छोड़ गुरु जी के पाँव,
और कही न शिव-गाँव ।।स्थापना।।
सिर का बोझ उतरवाने आये,
दृग्-जल लाये ।।जलं।।
मन का भार उतरवाने आये,
चन्दन लाये ।।चन्दनं।।
मान का चश्मा उतरवाने आये,
अक्षत लाये ।।अक्षतं।।
काम का भूत उतरवाने आये,
सुमन लाये ।।पुष्पं।।
क्षुधा का नशा उतरवाने आये,
नैवेद्य लाये ।।नैवेद्यं।।
मोह का रंग उतरवाने आये,
दीपिका लाये ।।दीपं।।
राग का दाग उतरवाने आये,
सुगंध लाये ।।धूपं।।
छल का ताज उतरवाने आये,
श्री फल लाये ।।फलं।।
कुप् का बुखार उतरवाने आये,
अरघ लाये ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
आ होने लगें गुरु माफिक,
होने प्रभु माफिक
जयमाला
।। सन्त साधजन बहती धारा ।।
रज कण राग द्वेष से रीते ।
परहित मर मिटते, दृग् तीते ।।
दृष्टि उठा हरते अंधियारा ।
सन्त साधजन बहती धारा ।।१।।
आते जाते मार थपेड़े ।
शंकर, कंकर टेड़े मेड़े ।।
बनता साधें परोपकारा ।
सन्त साधजन बहती धारा ।।२।।
ग्रीषम गर्म न शीतल ठण्डी ।
मार्ग न बना, चले पगडण्डी ।।
आश निरा-कुल सुख इस बारा ।
सन्त साधजन बहती धारा ।।३।।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
प्रभु से यही अरज,
आप जियें शत-शरद
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