- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 636
=हाईकू=
ले लो शरण अपनी,
‘के दुनिया अटवी-घनी ।।स्थापना।।
पूजा स्वप्न की मानते कहाँ,
जल लाया सो पुन: ।।जल।।
पूजा ‘घर’ की मानते कहाँ,
लाया चन्दन पुन: ।।चन्दनं।।
पूजा रात की मानते कहाँ,
लाया अक्षत पुन: ।।अक्षतं।।
पूजा जल्दी की मानते कहाँ,
पुष्प लाया सो पुन: ।।पुष्पं।।
पूजा छोटी-सी मानते कहाँ,
लाया नैवेद्य पुनः ।।नैवेद्यं।।
पूजा कराई मानते कहाँ,
दीप लाया सो पुन: ।।दीपं।।
पूजा सराही मानते कहाँ,
धूप लाया सो पुनः ।।धूपं।।
पूजा रस्ते की मानते कहाँ,
लाया श्री फल पुनः ।।फलं।।
पूजा भाव ‘जी मानते कहाँ,
अर्घ लाया जो पुनः ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
विद्यासागर वो नाम,
दे बना जो बिगड़े काम
जयमाला
चल पड़े जोवन देखो ना ।
बनाने आत्म खरा सोना ।।
खड़े बरसा विरछा नीचे ।
आंख कुछ खोले, कुछ मीचे ।।
सलोना जिन्हें इक अलोना ।
बनाने आत्म खरा सोना ।
चल पड़े जोवन देखो ना ।।१।।
खड़े जा पर्वत के ऊपर ।
सूर जब दिखलाये तेवर ।।
लिये दौना न कहे दो ना ।
बनाने आत्म खरा सोना ।
चल पड़े जोवन देखो ना ।।२।।
तुसारी ठण्ड, पड़ा पाला ।
आ चुराहे आसन माड़ा ।।
अगम गुण कीर्त शरण मोना ।
बनाने आत्म खरा सोना ।
चल पड़े जोवन देखो ना ।।३।।
।। जयमाला ।।
=हाईकू=
भावना दिन-रात भाऊँ,
स्तव यूँ ही तव गाऊँ
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