- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 630
=हाईकू=
‘जि निहारो,
ये दुखिया-कुटिया भी,
कभी पधारो ।।स्थापना।।
कर सकने, ये मन प्रांजल,
मैं भेंटूॅं दृग्-जल ।।जलं।।
कर सकने, ये मन निरंजन,
भेंटूॅं चन्दन ।।चन्दनं।।
कर सकने, ये मन बालक-वत्,
भेंटूॅं अक्षत ।।अक्षतं।।
कर सकने, ये मन निराकुल,
मैं भेंटूॅं गुल ।।पुष्पं।।
कर सकने, ये मनवा काबू में,
भेंटूॅं चरु मैं ।।नैवेद्यं।।
कर सकने, ये मन सीप-सखा,
भेंटूॅं दीपिका ।।दीपं।।
कर सकने, ये मन वशीभूत,
मैं भेंटूॅं धूप ।।धूपं।।
कर सकने, ये मन अविचल,
भेंटूॅं श्री फल ।।फलं।।
कर सकने, ये मन सजग,
मैं भेंटूॅं अरघ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
लो हल्का बना,
सिर-मौत के ‘कि हो सके चढ़ना
जयमाला
खुली लॉटरी
‘कि मेरी
तरी वो तरी
‘जी डाली थी नहीं अभी नजर
आपने
थी साथ की अभी मुस्कान भर
पोटली भरी
‘कि मेरी
तरी वो तरी
खुली लॉटरी
‘कि मेरी
तरी वो तरी
दी क्या पाद-मूल में हमें जगह
आपने
दी क्या पाद धूलिका बे-वजह
लो बनी बिगड़ी
‘कि मेरी
तरी वो तरी
खुली लॉटरी
‘कि मेरी
तरी वो तरी
था रखा मेरे माथ पे हाथ क्या
आपने
लिया अभी क्या हाथ में हाथ था
लगी सावन झड़ी
‘कि मेरी
तरी वो तरी
खुली लॉटरी
‘कि मेरी
तरी वो तरी
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
चाहिये और क्या,
नाम-जप तेरा,
हुआ ही मेरा
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