- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 616
=हाईकू=
कभी,
हो यूँ भी,
बर्से आप कृपा
रु भींगे कुटिया ।।स्थापना।।
ए ! मति हंसा,
जल स्वीकार, कर दो पूरी मंशा ।।जलं।।
नूरे अहिंसा !
गंध स्वीकार, कर दो पूरी मंशा ।।चन्दनं।।
‘बाँसुरी’ वंशा,
सुधा स्वीकार, कर दो पूरी मंशा ।।अक्षतं।।
काम-विध्वंसा,
पुष्प स्वीकार कर दो पूरी मंशा।।पुष्पं।।
दूर-प्रशंसा !
चरु स्वीकार, कर दो पूरी मंशा ।।नैवेद्यं।।
जुदा ‘धी-कंसा’
दीप स्वीकार, कर दो पूरी मंशा ।।दीपं।।
जुदा ‘ही-दंशा’
धूप स्वीकार, कर दो पूरी मंशा ।।धूपं।।
नेकेक इंसां,
फल स्वीकार, कर दो पूरी मंशा ।।फलं।।
वृषभ-अंशा,
अर्घ स्वीकार, कर दो पूरी मंशा ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
‘आई-ना’
गुरु जी को रेवड़ी चीन-चीन बाँटना
जयमाला
शरण सहारे,
‘जि गुरु जी इक बार,
लेने भी दो पखार,
चरण तुम्हारे,
शरण हमारे,
चरण तुम्हारे
नाप हो रहे मुक्ति-रस्ते
इन्हीं से तो
आप को कहे जग फरिश्ते
इन्हीं से हो,
नाप हो रहे मुक्ति रस्ते
तरण-किनारे,
चरण तुम्हारे,
शरण सहारे,
‘जि गुरु जी इक बार,
लेने भी दो पखार,
चरण तुम्हारे,
शरण हमारे,
चरण तुम्हारे
चढ़ रहे हो मुक्ति शिखर पे,
इन्हीं से तो,
बढ़ रहे हो सुख की डगर पे,
इन्हीं से तो,
चढ़ रहे हो मुक्ति शिखर पे,
नयन सितारे,
चरण तुम्हारे,
शरण सहारे,
‘जि गुरु जी इक बार,
लेने भी दो पखार,
चरण तुम्हारे,
शरण हमारे,
चरण तुम्हारे
कर रहे हो जीवों की रक्षा,
इन्हीं से तो,
किये जा रहे हो पार-कक्षा
इन्हीं से तो,
कर रहे दो जीवों की रक्षा
सगुन नजारे,
चरण तुम्हारे,
शरण सहारे
‘जि गुरु जी इक बार,
लेने भी दो पखार,
चरण तुम्हारे,
शरण हमारे,
चरण तुम्हारे
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
दो ‘वर’
रोज आपके आहार, हों हमारे घर
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