- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 607
=हाईकू=
मिलता चाँद से,
एक चेहरा तो वो सिर्फ तेरा ।।स्थापना।।
मीरा पा गई तीर,
आया द्वार में भी लिये नीर ।।जलं।।
मीरा दी लगा-पार,
लिये गन्ध मैं भी आया द्वार ।।चन्दनं।।
मीरा पा गई सुधा,
आया द्वार मैं भी लिये सुधाँ ।।अक्षतं।।
मीरा पा गई कूल,
आया द्वार मैं भी लिये फूल ।।पुष्पं।।
मीरा पा गई स्वर,
लिये चरु मैं भी आया दर ।।नैवेद्यं।।
खम् मीरा ने छू लिया,
आया द्वार में भी लिये दीया ।।दीपं।।
मीरा पा गई डूब,
आया द्वार मैं भी लिये धूप ।।धूपं।।
मीरा पा गई साहिल,
आया द्वार मैं भी ले फल ।।फलं।।
मीरा पा गई मग,
आया द्वार मैं भी ले अरघ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
कभी मिटाते न भूख,
परोस के गुरु जी झूठ
जयमाला
था बड़ी बेशबरी से इन्तजार ।
आप अपनी इस शबरी के द्वार ।।
आ ही गये
आज आ ही गये ।
बेचैन नैन
पा ही गये,
आज पा ही गये
खुशियाँ अपार ।।
दिवाली फाग ।
निराली जाग ।।
अनूठा भाग ।
अनोखा राग ।।
साहुनी फुहार ।
बेचैन नैन
आज पा ही गये
खुशियाँ अपार ।
आज आ ही गये
आप अपनी इस शबरी के द्वार ।
नजारा स्वर्ग ।
सुहागा स्वर्ण ।।
कलि समशर्ण ।
निरा संस्मर्ण ।।
बासन्ती बहार ।
साहुनी फुहार ।
बेचैन नैन
आज पा ही गये
खुशियाँ अपार ।।
आज आ ही गये
आप अपनी इस शबरी के द्वार ।।
चल चार धाम ।
मन मृग विराम ।।
तर छांव, घाम ।
तट नाव शाम ।।
चूनरी सितार ।
बासन्ती बहार ।
साहुनी फुहार ।
बेचैन नैन
आज पा ही गये
खुशियाँ अपार ।।
आज आ ही गये
आप अपनी इस शबरी के द्वार ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
अंधेरा पग उल्टे जाता भाग,
श्री गुरु चिराग
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