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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 601

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 601

हाईकू
तुम्हें बनाने काम आते,
तभी आ सभी रिझाते ।।स्थापना।।

आये द्वार पे तेरे,
लाये उदक, खोने अंधेरे ।।जलं।।

आये द्वार पे तिरे,
लाये चन्दन, होने विरले ।।चन्दनं।।

आये द्वार पे तिरे,
लाये धां, खोने रोने चहरे ।।अक्षतं।।

आये द्वार पे तिरे,
लाये सुमन होने गहरे ।।पुष्पं।।

आये द्वार पे तिरे,
लाये नैवेद्य खोने पहरे ।।नैवेद्यं।।

आये द्वार पे तेरे,
लाये दीपक पाने सबेरे ।।दीपं।।

आये द्वार पे तिरे,
लाये सुगन्ध खोने नखरे ।।धूपं।।

आये द्वार पे तेरे,
लाये श्री फल बनने चेरे ।।फलं।।

आये द्वार पे तिरे,
लाये अरघ, आने नियरे ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
छू वो सिर का बोझ,
छूते ही गुरु पद-सरोज

जयमाला
आपका ‘जि आपका ही एहसान है
ये होंठों पे जो खेले मुस्कान है
आपका ‘जि आपका ही एहसान है

लौटने से रहीं पुन: माथे पे झुर्रिंयाँ
लौट जो आई पुनः गालों पे सुर्ख़िंयाँ
किसी और का नहीं ‘जि आपका वरदान है
ये होंठों पे जो खेले मुस्कान है
आपका ‘जि आपका ही एहसान है

पद्म-पाँख पलकें, हो गईं आँखें सुरमईं
घुँघराली अलकें, हो गईं चिकनी नईं-नईं
किसी और का नहीं ‘जि आपका वरदान है
ये होंठों पे जो खेले मुस्कान है
आपका ‘जि आपका ही एहसान है

नासिका पुष्प चम्पक सलोनी चिबुक
निकर-नख बना चाँद का टुकड़ा मुख
किसी और का नहीं ‘जि आपका वरदान है
ये होंठों पे जो खेले मुस्कान है
आपका ‘जि आपका ही एहसान है
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
खुद-सा कीजे ‘मत-मराल’,
आँखें तरेरे काल

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