- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 592
हाईकू
खाती गोटे,
‘कि पतंग उड़ जाये,
सेवा में आये ।।स्थापना।।
न्यारे हो तुम तिहु-जग से,
पूजूँ सो जल-दृग् से ।।जलं।।
जग भर से न्यारे तुम,
चन्दन सो भेंटें हम ।।चन्दनं।।
तुम हो जग से न्यारे,
भेंटूँ सो धाँ-शालि पिटारे ।।अक्षतं।।
मैं तभी पूजूँ ले कुसुम,
हो जग से न्यारे तुम ।।पुष्पं।।
तुम हो न्यारे जग भर से,
पूजूँ सो घी चरु से ।।नैवेद्यं।।
जग से न्यारे तुम इसीलिये,
है लिये, घी दिये ।।दीपं।।
तुम जग से न्यारे सो भेंटूँ धूप,
हित चिद्रूप ।।धूपं।।
सारे जग से तुम न्यार,
भेंटूँ सो फल दृग्-हार ।।फलं।।
तुम न्यारे हो जग से,
तभी पूजूँ मैं अरघ से ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
सुबह
‘बन जाती’
शाम,
लेते ही गुरु का नाम
जयमाला
दिन-रात
सिर्फ और सिर्फ इक यही फरियाद
बना रहे सदैव,
आपका गुरुदेव,
मेरे सिर पर हाथ
दिन-रात
इक दूसरे को बुनता,
मकड़ी सा ताना-बाना ।
आज-कल का जमाना,
सच कहे तो जमा…ना ।।
दिया, छुड़ा न चल देना कहीं
जि गुरु जी अपना साथ ।
यही फरियाद
काम चल रहा,
राम भरोसे आज-कल ।
ज्यादा बम बारुद,
है बरस रहा कम जल ।।
जल भिन्न लो बना जल जात
अपने ही भाँत
यही फरियाद
पश्चिमी हवा धीमा-सा,
लो घोलती जहर ।
हहा ! करता जा रहा,
नशा बीच बच्चियों के घर ।
रात विघटा,
दो प्रकटा,
जीवन में सबके नव प्रभात
यही फरियाद
दिन-रात
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
पत्थर फल में,
‘दें बदल’
गुरु-तरु पल में
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