- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 585
“हाईकू”
तेरा मैं, मेरा तू,
इस रिश्ते की न हो कम खुश्बू ।।स्थापना।।
तेरी छांव में खड़े,
फिकर मेरा दुश्मन करे ।।जलं।।
तेरा हाथ जो मेरे सिर-पर,
क्यूँ करूँ फिकर ।।चन्दनं।।
भागे फिकर दाबे दुम,
दिये क्या दिखाई तुम ।।अक्षतं।।
तुम्हें देखे ‘कि एक बार,
फिकर चित् खाने चार ।।पुष्पं।।
फिकर देखे यम दोर,
क्या देखे नजर तोर ।।नैवेद्यं।।
किस बात की फिकर,
चालें साथ जो गुरुवर ।।दीपं।।
फिकर उसे क्या करना,
है जिसे तेरी शरणा ।।धूपं।।
फिकर लागे किनारे,
गुरुदेव तारणहारे ।।फलं।।
है नहीं जिस पे तेरी नजर,
वो करे फिकर ।।अर्घ्यं।।
“हाईकू”
क्या लेना जहाँ से,
सब ही तो मिल रहा यहां से
।।जयमाला।।
बोलो बोलो, बोलो बोलो, जय बोलो
विद्यासागर जी महाराज की, जय बोलो
बोलो बोलो, बोलो बोलो, जय बोलो
इनके जप और ध्यान की जय बोलो ।
इनके तप स्वाभिमान की जय बोलो ।।
इनके पर-हित किये काज की जय बोलो ।
विद्यासागर जी महाराज की जय बोलो ।।
बोलो बोलो, बोलो बोलो, जय बोलो
इनके दान और त्याग की जय बोलो ।
इनके ज्ञान वैराग की जय बोलो ।।
इनके पद श्रमण सरताज की जय बोलो ।
विद्यासागर जी महाराज की जय बोलो ।।
बोलो बोलो, बोलो बोलो, जय बोलो
इनके सत् और शील की जय बोलो ।
इनके व्रत विरत ढ़ील की जय बोलो ।
इनके सहज जीवन साज की जय बोलो ।।
विद्यासागर जी महाराज की जय बोलो ।।
बोलो बोलो, बोलो बोलो, जय बोलो
इनके साहस व प्रभाव की जय बोलो ।
इनके निरालसी भाव की जय बोलो ।
इनके सपने राम राज की जय बोलो।।
विद्यासागर जी महाराज की जय बोलो ।।
बोलो बोलो, बोलो बोलो, जय बोलो
विद्यासागर जी महाराज की, जय बोलो
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
“हाईकू”
करते तेरा सुमरण,
होवे सु-मरण मेरा
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