- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 579
=हाईकू=
छाई कालिमा घोर,
गुरु जी छा दो लालिमा भोर ।।स्थापना।।
भाग निकले जलन दिल से,
‘कि पूजूँ जल से ।।जलं।।
भाग निकले राग मन से,
पूजूँ ‘कि चन्दन से ।।चन्दनं।।
भाग निकले मोह दिल से,
पूजूँ ‘कि तण्डुल से ।।अक्षतं।।
भाग निकले काम मन से,
पूजूँ ‘कि सुमन से ।।पुष्पं।।
भाग निकले क्षुधा मन से,
पूजूँ ‘कि व्यंजन से ।।नैवेद्यं।।
भाग निकले ‘ही’ दिल से’
‘कि पूजूँ लौं अचल से ।।दीपं।।
भाग निकले कुप् मन से,
‘कि पूजूँ धूप-कण से ।।धूपं।।
भाग निकले फैशन दिल से,
‘कि पूजूँ फल से ।।फलं।।
‘भाग’ निकले दिल से,
पूजूँ द्रव्य ‘कि सकल से ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
जो आप पाँवों का,
‘हो प्रक्षालन’
तो पाप भावों का
।।जयमाला।।
दृग् आप जहाँ पड़ जाते हैं ।
वन निर्जन खो जाता क्रन्दन ।
धन ! कण-कण हो जाता चन्दन ।।
पग आप जहाँ बढ़ जाते हैं ।
दृग् आप जहाँ पड़ जाते हैं।
पत्थर ‘जी’ हो जाता पावन ।
पतझर भी हो जाता सावन ।
पग आप जहाँ बड़ जाते हैं ।
दृग् आप जहाँ पड़ जाते हैं ।
वन निर्जन खो जाता क्रन्दन ।
धन ! कण-कण हो जाता चन्दन ।।
पग आप जहाँ बढ़ जाते हैं ।
दृग् आप जहाँ पड़ जाते हैं।
गदगद ‘जी’ हो जाता हर-जन ।
अद्भुत ही हो जाता हर-क्षण ।
पग आप जहाँ बढ़ जाते हैं ।
दृग् आप जहाँ पड़ जाते हैं ।
वन निर्जन खो जाता क्रन्दन ।
धन ! कण-कण हो जाता चन्दन ।।
पग आप जहाँ बढ़ जाते हैं ।
दृग् आप जहाँ पड़ जाते हैं।
जयकारा गुरुदेव का…
जय जय गुरुदेव.
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
अभिलाष,
पा जाऊँ निवास,
आप चरण-पास
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