- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 570
=हाईकू =
आनन्द होता अनन्त,
करते ही वन्दना सन्त ।।स्थापना।।
जल चढ़ाऊँ,
चतुष्टय अनन्त कल ‘कि पाऊँ ।।जलं।।
भेंटूँ चन्दन,
अब बर्षा में ‘कि न करूँ रुदन ।।चन्दनं।।
शालि धाँ भेंटूँ,
फैली शाम-शाम ‘कि दुकाँ समेटूँ ।।अक्षतं।।
भेंटूँ पहुप,
पर-निन्दा समय रहूँ ‘कि चुप ।।पुष्पं।।
चरु चढ़ाऊँ,
आये कतार जिस पुरु ‘ऊ’ आऊँ ।।नैवेद्यं।।
दिया चढ़ाऊँ,
घना अंधेरा जहां दिया ‘कि पाऊँ ।।दीपं।।
धूप चढ़ाऊँ,
सर-अन्तर् देख ‘कि स्वरूप पाऊँ ।।धूपं।।
भेंटूँ श्रीफल,
खो मेला, हो भेला ‘कि गिरि निकल ।।फलं।।
अर्घ चढ़ाऊँ,
धार भवेक स्वर्ग पवर्ग पाऊँ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
गुरु से जुड़ प्राणी,
‘होते गूंगे के गुड़ के’ धनी
।। जयमाला।।
अय ! रहनुमा तुमसे मिल के
हुये अरमाँ पूरे दिल के
आने लगीं हैं
आँगन में चिड़ियाँ
आने लगीं हैं
लगाने लगीं हैं
गीत झड़ियॉं
दामन में खुशियाँ
आने लगी हैं
खुद-ब-खुद चल के
बागन में कलियाँ
मुस्कुराने लगीं हैं
रूठीं तितलियाँ
मुड़ आने लगीं हैं
सुहाने तराने,
नये और पुराने
संग भंवरें गाने लगीं हैं,
घर पर मेरे रहती
अब धूप दिन भर
रात होती न जुदा
चांदनी छिन भर
भीतरी अंखियां
डबडाने लगीं हैं ।
दामन में खुशियाँ
आने लगी हैं
खुद-ब-खुद चल के
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
जायें न कभी निष्फल,
गुजारे दो सत्संग पल
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