- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 564
=हाईकू =
आप बर्षाते हैं,
‘सुधा’
सिन्धु और तरसाते हैं ।।स्थापना।।
तुम्हें प्रणाम,
दृग् जल चढ़ाते ही, हाथ मुकाम ।।जलं।।
तुम्हें प्रणाम,
चन्दन चढ़ाते ही, था बना काम ।।चन्दनं।।
तुम्हें प्रणाम,
अक्षत चढ़ाते ही, होड़ विराम ।।अक्षतं।।
तुम्हें प्रणाम,
‘कि पुष्प चढ़ाते ही, ‘काम’ तमाम ।।पुष्पं।।
तुम्हें प्रणाम,
नैवेद्य चढ़ाते ही, क्षुध् इंतकाम ।।नैवेद्यं।।
तुम्हें प्रणाम,
घी दीप चढ़ाते ही, निधि निर्दाम ।।दीपं।।
तुम्हें प्रणाम,
‘कि धूप चढ़ाते ही, अनूप शाम ।।धूपं।।
तुम्हें प्रणाम,
श्रीफल चढ़ाते ही, भू-अष्टम् नाम ।।फलं।।
तुम्हें प्रणाम,
अरघ चढ़ाते ही, नौ शिव धाम ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
झुक झूम के आ धूम मचायें,
आ जै-माल गायें
।।जयमाला।।
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढेर खुशियाँ लाये
था तन्हा तन्हा
तुम बिना जीवन मेरा
था जीवन में मेरे अँधेरा
तुम बिना
तुमने रंगों से मेरी जिन्दगी भर दी ।
तुमने रोशन ये मेरी जिन्दगी कर दी ।।
था तन्हा तन्हा
तुम बिना जीवन मेरा
था जीवन में मेरे अँधेरा
तुम बिना
है तेरा रहमो-करम
‘के मैं कदम-कदम
बढ़ रहा हूँ मंजिल की तरफ, हरदम
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढेर खुशियाँ लाये
था तन्हा तन्हा
तुम बिना जीवन मेरा
था जीवन में मेरे अँधेरा
तुम बिना
मेरी चूनर में, चाँद तारे टके तुमनें
मेरी फिकर में मोती आँखों के रखे तुमनें
तुमने रंगों से मेरी जिन्दगी भर दी ।
तुमने रोशन ये मेरी जिन्दगी कर दी ।।
था तन्हा तन्हा
तुम बिना जीवन मेरा
था जीवन में मेरे अँधेरा
तुम बिना
तुम मेरी जिन्दगी में आये
ढेर खुशियाँ लाये
था तन्हा तन्हा
तुम बिना जीवन मेरा
था जीवन में मेरे अँधेरा
तुम बिना
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
सागर जल कण,
‘अगन्य’
आप सद्-गुण-गण
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