- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 560
=हाईकू=
कहीं आनन्द लेता श्वास,
तो सिर्फ गुरु के पास ।।स्थापना।।
भेंटूँ दृग् जल,
ए ! भगवन् आन,
दो कर कल्याण ।।जलं।।
भेंटूँ संदल,
ए ! भगवन् मेरे,
दो मेंट अंधेरे ।।चन्दनं।।
भेंटूँ तुण्डुल,
ए ! भगवन् मोर,
दो जोड़ बेजोड़ ।।अक्षतं।।
भेंटूँ गुल,
ए ! भगवन् हमार,
दो पार उतार ।।पुष्पं।।
भेंटूँ चर,
ए ! भगवन् सुनो,
मुझे अपना चुनो ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ ज्योतर,
ए ! भगवन् त्वरा,
दो द्यु-शिव धरा ।।दीपं।।
भेंटूँ अगर,
ए ! भगवन् मम,
हो राह सुगम ।।धूपं।।
भेंटूँ श्रीफल,
ए ! भगवन् जरा,
दो बरषा कृपा ।।फलं।।
द्रव्य सकल,
ए ! भगवन् इसे,
मैं भेंटूँ, जी हर्षे ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
‘कल्पना’,
काकी रु-गुरु बिना,
और बच्चे पालना
।।जयमाला।।
अपना,
बना के अपना
अपना बना के सपना
चित् सभी का ले जायें चुरा के
गुरु जी मुस्कुरा के
अनसुलझे प्रश्नों का
लाजवाब
बतला जबाब
लगा दें पार उस नौका
जर्रा नजर उठा के
गुरु जी मुस्कराके
अपना,
बना के अपना
अपना बना के सपना
चित् सभी का ले जायें चुरा के
गुरु जी मुस्कुरा के
सफर की थकान का
मुलाकात कर,
दो बात कर
कर भार देते हल्का
मुद्रा अभय दिखा के
गुरु जी मुस्कुरा के
अपना,
बना के अपना
अपना बना के सपना
चित् सभी का ले जायें चुरा के
गुरु जी मुस्कुरा के
अनसुलझे प्रश्नों का
लाजवाब
बतला जबाब
लगा दें पार उस नौका
जर्रा नजर उठा के
गुरु जी मुस्कराके
अपना,
बना के अपना
अपना बना के सपना
चित् सभी का ले जायें चुरा के
गुरु जी मुस्कुरा के
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
=हाईकू=
किसी का साया,
रहता मेरे साथ
थाम के हाथ
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