- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 545
“हाईकू”
पाये छू रज,
‘पावन’
गुरु रोज आये ‘सूरज’।। स्थापना।।
नवधा भक्ति सपना,
लिये जल, लीजे अपना ।।जलं।।
पड़गाहन सपना,
लिये गंध, लीजे अपना ।। चन्दनं।।
चरणोदक सपना,
लिये पुष्प, लीजे अपना ।। अक्षतं।।
रज-पावन सपना,
लिये पुष्प, लीजे अपना ।।पुष्पं।।
स्वानुभवन सपना,
लिये चरु, लीजे अपना ।। नैवेद्यं।।
ज्ञान-कल्याण सपना,
लिये दीप, लीजे अपना ।।दीपं।।
कर्म दहन सपना,
लिये धूप, लीजे अपना ।।धूपं।।
निराकुलता सपना,
लिये फल लीजे अपना ।।फलं।।
स्वर्ग-पवर्ग सपना,
लिये अर्घ्य लीजे अपना ।।अर्घ्यं।।
“हाईकू”
जाता चेहरा न किसका खिल,
श्री-गुरु से मिल
।। जयमाला।।
आपके भक्तों में जो आने लगे
आप जो मुझे अपना कहके बुलाने लगे
दुनिया हमें लगाने लगी गले
भुला के सारे शिकवे गिले
आपके अपनों में जो आने लगे
आप मिरे सपनों में क्या आने लगे
दुनिया हमें लगाने लगी गले
भुला के सारे शिकवे गिले
थी न जहाँ कोई गुंजाईश
वो भी मेरी होने लगी पूरी ख्वाहिश
लगे खुशियों के सिलसिले
दुनिया हमें लगाने लगी गले
भुला के सारे शिकवे गिले
आपकी नजरों में क्या आने लगे
नामे-अल्फाज मिरे
अय ! धड़कने साज मिरे
आप अधरों पर क्या छाने लगे
थी न जहाँ कोई गुंजाईश
वो भी मेरी होने लगी पूरी ख्वाहिश
लगे खुशियों के सिलसिले
दुनिया हमें लगाने लगी गले
भुला के सारे शिकवे गिले
आपके भक्तों में जो आने लगे
आप जो मुझे अपना कहके बुलाने लगे
दुनिया हमें लगाने लगी गले
भुला के सारे शिकवे गिले
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
‘आप मिले’,
श्री गुरु द्वार हो खड़े,
न माँगना पड़े
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