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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 530

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 530
=हाईकू=
आशीर्वाद, श्री गुरु !
‘हाथ फलता’
‘बाद’री’ तरु ।।स्थापना।।

जन्म-मृत्यु से छूटूँ,
आश ले, जल कलशे भेंटूँ ।।जलं।।

द्वेष-क्लेश से छूटूँ,
आश ले, गंध कलशे भेंटूँ ।।चन्दनं।।

मान-ग्लान से छूटूँ,
आश ले, शाली धाँ निरे भेंटूँ ।।अक्षतं।।

वाम-काम से छूटूँ,
आश ले, पुष्प द्यु वर्षे भेंटूँ ।।पुष्पं।।

भोग-रोग से छूटूँ,
आश ले, चरु घी भरे भेंटूँ ।।नैवेद्यं।।

माया काया से छूटूँ,
आश ले, दीप मन से भेंटूँ ।।दीपं।।

राग-आग से छूटूँ,
आश ले, धूप कलशे भेंटूँ ।।धूपं।।

द्वन्द-फन्द से छूटूँ,
आश ले, फल विरले भेंटूँ ।।फलं।।

जोड़-तोड़ से छूटूँ,
आश ले, द्रव्य वसु ले भेंटूँ ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
निकाचित भी पाप जाते कट,
श्री गुरु निकट

।। जयमाला।।

मान के भक्त अपना
दे दिया करो
दिल ए ! दरिया अहो
दे दिया करो जर्रा सा वक्त अपना

जान के भक्त अपना
चला आता हूँ मैं
मिलने तुमसे
बड़ी दूर से
न और काम से
सिर्फ मिलने तुमसे
चला आता हूँ मैं बड़ी दूर से,
दया कर दिया करो
दे दिया करो जर्रा सा वक्त अपना

सिर पर अपने पैर रख के
चला आता हूँ मैं
मिलने तुमसे
बड़ी दूर से
न और काम से
सिर्फ मिलने तुमसे
चला आता हूँ मैं बड़ी दूर से,
दया कर दिया करो

लोगों के खाते हुए धक्के
चला आता हूँ मैं
मिलने तुमसे
बड़ी दूर से
न और काम से
सिर्फ मिलने तुमसे
चला आता हूँ मैं बड़ी दूर से,
दया कर दिया करो

ताने सुनते हुये जग के
चला आता हूँ मैं
मिलने तुमसे
बड़ी दूर से
न और काम से
सिर्फ मिलने तुमसे
चला आता हूँ मैं बड़ी दूर से,
दया कर दिया करो

।।जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
करें प्यार ही,
‘माँएँ सभी’,
बच्चों को लगा डाँट भी

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