- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 521
=हाईकू=
गुरु दिल में रहना,
चाहता न कौन कह…ना ।।स्थापना।।
जन्म मृत्यु ‘कि बिलायें,
घट जल-गंग चढ़ायें ।।जलं।।
राग-द्वेष ‘कि बिलायें,
घट जल-गंध चढ़ायें ।।चन्दनं।।
मान-मोह ‘कि बिलायें,
अखण्ड धाँ-शाली चढ़ायें ।।अक्षतं।।
काम-क्रोध ‘कि बिलायें
वन-नन्द पुष्प चढ़ायें ।।पुष्पं।।
रोग-शोक ‘कि बिलायें,
चरु-अरु-गंध चढ़ायें ।।नैवेद्यं।।
पन-मिथ्यात्व ‘कि बिलायें,
निस्पन्द ज्योत चढ़ायें ।।दीपं।।
कर्म-बन्ध ‘कि बिलायें,
सुगंध दिश-विदिश् चढ़ायें ।।धूपं।।
माया-लोभ ‘कि बिलायें,
सानन्द श्रीफल चढ़ाये ।।फलं।।
पाँच पाप ‘कि बिलायें,
भा अमन्द अर्घ चढ़ायें ।।अर्घ्यं।।
= हाईकू =
‘फसाने में’
न लेते मजे’
‘जि गुरु जी होते मँजे
।। जयमाला।।
गरब तू मेरा
है रब तू मेरा
तकदीर मेरी
तस्वीर तेरी
जिन्दगी तू मेरी
तू है रूह मेरी
क्या कुछ न मेरा
है सब तू मेरा
है रब तू मेरा
पहचान मेरी
मुस्कान तेरी
तकदीर मेरी
तस्वीर तेरी
जिन्दगी तू मेरी
रोशनी मेरी
बन्दगी तेरी
पहचान मेरी
मुस्कान तेरी
तकदीर मेरी
क्या कुछ न मेरा
है सब तू मेरा
है रब तू मेरा
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
दें थमा, गुरु जी सुलह,
किसी न किसी तरह
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