- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 516
*हाईकू*
‘दिये’ उत्तर, नुत्तर तेरे,
मेरे प्रश्न अंधेरे ।।स्थापना।।
जन्म मरण पीछे पड़े,
त्राहि माम् ले जल खड़े ।।जलं।।
परावर्तन पीछे पड़े,
त्राहि माम् ले गंध खड़े ।।चन्दनं।।
दुरित पन पीछे पड़े,
त्राहि माम् ले धान खड़े ।।अक्षतं।।
बाण मदन पीछे पड़े,
त्राहि माम् ले पुष्प खड़े ।।पुष्पं।।
सप्त व्यसन पीछे पड़े,
त्राहि माम् ले चरु खड़े ।।नैवेद्यं।।
भ्रम ना…गिन पीछे पड़े,
त्राहि माम् ले दीप खड़े ।।दीपं।।
‘वस’ दुश्मन पीछे पड़े,
त्राहि माम् ले धूप खड़े ।।धूपं।।
कोरे सपन पीछे पड़े,
त्राहि माम् ले फल खड़े ।।फलं।।
अपशगुन पीछे पड़े,
त्राहि माम् ले अर्घ खड़े ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
न खाते,
‘बना’ गुरु जी ‘लड्डू-मन के’ न खिलाते
।। जयमाला।।
रख लो अपने सँग-सँग हमें
गुरु जी लो अपने रॅंग-रॅंग हमें
हूँ आप-का ही मैं
हूँ आपका ही मैं
ये दुनिया मतलबी
है दुनिया में ठगी
इक तुम्हारे सिवा
है फिकर किसे और की
नहीं अजनबी मैं ।
हूँ आपका ही मैं ।
रख लो अपने सँग-सँग हमें
गुरु जी लो अपने रॅंग-रॅंग हमें
हूँ आप-का ही मैं
हूँ आपका ही मैं
जमा ‘ना’ जमाना
पहने गिरगिटी बाना
इक तुम्हारे सिवा
दर्द और का किसने जाना
नहीं अजनबी मैं ।
हूँ आपका ही मैं ।
रख लो अपने सँग-सँग हमें
गुरु जी लो अपने रॅंग-रॅंग हमें
हूँ आप-का ही मैं
हूँ आपका ही मैं
जगत् बस जगत नाम का
भगत हर वक्त दाम का
इक तुम्हारे सिवा
है खिवैय्या कौन नैय्या शिव ग्राम का
नहीं अजनबी मैं ।
हूँ आपका ही मैं ।
रख लो अपने सँग-सँग हमें
गुरु जी लो अपने रॅंग-रॅंग हमें
और का नाहीं मैं
हूँ आपका ही मैं
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
*हाईकू*
छूते मंजिल,
सपने-‘अपने’
श्री गुरु से मिल
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