- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 513
हाईकू
ले सीढ़ी खड़ी माँएँ,
जा बच्चे ‘कि छू आसमाँ जाएँ ।।स्थापना।।
जल लाये,
न खेल बन के रह जीवन जाये ।।जलं।।
गंध लाये,
न द्वन्द बन के रह जीवन जाये ।।चन्दनं।।
सुधाँ लाये,
न सोपाँ बन के रह जीवन जाये ।।अक्षतं।।
गुल लाये,
न पुल बन के रह जीवन जाये ।।पुष्पं।।
चरु लाये,
न स्वप्न बन के रह जीवन जाये ।।नैवेद्यं।।
दीप लाये,
न सीप बन के रह जीवन जाये ।।दीपं।।
धूप लाये,
न ‘कूप मण्डूक-रह’ जीवन जाये ।।धूपं।।
फल लाये,
न ‘किल-किल’ निकल जीवन जाये ।।फलं।।
अर्घ लाये,
न नर्क बन के रह जीवन जाये ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
हैं देते मिला मंजिल से,
गुरु दे अंक दिल से
जयमाला
पाया है, बड़ी मुश्किल से तुझे,
चाहा है, मैंने दिल से तुझे,
न भुला देना मुझे
मुझे इतनी खुशी
तूने दी, जिन्दगी
न रुला देना मुझे
न भुला देना मुझे
निगाहें भीतरी
तूने दी, रोशनी
भूल ‘झूले’ न झुला देना मुझे
न भुला देना मुझे
पाया है, बड़ी मुश्किल से तुझे,
चाहा है, मैंने दिल से तुझे,
न भुला देना मुझे
मुझे इतनी खुशी
तूने दी, जिन्दगी
न रुला देना मुझे
न भुला देना मुझे
सर और कालर उठी
तूने दी दृग् नमी
चिर न सुला देना मुझे
न भुला देना मुझे
पाया है, बड़ी मुश्किल से तुझे,
चाहा है, मैंने दिल से तुझे,
न भुला देना मुझे
मुझे इतनी खुशी
तूने दी, जिन्दगी
न रुला देना मुझे
न भुला देना मुझे
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
लगती ज्यों-जाँ,
‘लगते बच्चे’
माँओं को, न ‘कि बोझा
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