- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 510
हाईकू
अर्जुन भले न हम,
एकलव्य से भी न कम ।।स्थापना।।
कृपा ‘कि गुरु जी, आपकी पा जाऊँ,
जल चढ़ाऊँ ।।जलं।।
किरपा आप ‘कि दो बरषा,
भेंटूँ चन्दन घिसा ।।चन्दनं।।
दाने अक्षत चढ़ाऊँ,
कृपा कि सत्-संगत पाऊँ ।।अक्षतं।।
पा
आप कृपा,
मन्मथ चाटे धूल,
‘कि भेंटूँ फूल ।।पुष्पं।।
कृपा गुरु जी आपकी पाने,
लाये चरु चढ़ाने ।।नैवेद्यं।।
भेंटूँ दीव,
‘कि कृपा गुरु जी,
आप की हो नसीब ।।दीपं ।।
चढ़ाऊँ धूप ‘कि पा जाऊँ,
आपकी कृपा अनूप ।।धूपं।।
कृपा आप ‘कि जाये बरष,
भेंटूँ फल सरस ।।फलं।।
पा आप कृपा,
ओघ-अघ मेंटूँ
‘कि अरघ भेंटूँ ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
दें बना गुरु जी भगवान् का
हाथ खींच ‘आपका’
जयमाला
मैंने रास्ते-नजर तुम्हें
है बसा लिया जिगर में
मुझे भुला के भी
मुझसे दूर जाके भी
न जा सकोगे और कहीं अब
अय ! मेरे रब
मेरी धड़कनों से तेरी आने लगी सदा
इक रूह तेरी मेरी भले जिस्म है जुदा
हूँ सिर्फ और सिर्फ तेरा मैं
है मुझे इस बात पे गरब
अय ! मेरे रब
मैंने रास्ते-नजर तुम्हें
है बसा लिया जिगर में
मुझे भुला के भी
मुझसे दूर जाके भी
न जा सकोगे और कहीं अब
अय ! मेरे रब
मेरी साँसों से तेरी आने लगी खुशबू
अपनी जगह मुझे आईने में आया नजर तू
हूँ सिर्फ़ और सिर्फ़ तेरा मैं
है मुझ इस बात पे गरब
अय ! मेरे रब
मैंने रास्ते-नजर तुम्हें
है बसा लिया जिगर में
मुझे भुला के भी
मुझसे दूर जाके भी
न जा सकोगे और कहीं अब
अय ! मेरे रब
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
मंजिल आती बढ़ सौ-सौ हाथ,
श्री गुरु के साथ
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