- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 511
हाईकू
चुराई जाती,
हँसी होंठो पे ‘ऋषि’ न यूँ ही आती ।।स्थापना।।
पाप कपूर से धू-धू कर जायें,
जल चढ़ायें ।।जलं।।
भाव कि छू ‘भी’ तर सूनर जायें,
गंध चढ़ायें ।।चन्दनं।।
ओड़ी चूनर हूबहू धर जायें,
‘कि धाँ चढ़ायें ।।अक्षतं।।
भूल ‘कि भूल-कूकर जायें,
पुष्प चढ़ायें ।।पुष्पं।।
पा आप कृपा बन भू-सुर जायें,
चरु चढ़ायें ।।नैवेद्यं।।
देशना शब्द-शब्द छू कर जायें,
दीप चढ़ायें ।।दीपं।।
योग बेंत से हो ‘कि दूनर जायें,
धूप चढ़ायें ।।धूपं।।
आयें, ‘फिर के’ न द्यु-पुर जायें,
श्री फल चढ़ायें ।।फलं।।
चाँद-तारे के टक चूनर जायें,
अर्घ्य चढ़ायें ।।अर्घ्यं।।
हाईकू
पलटते न पन्ना,
गुरु जी चोटी से बाँधे बिना
जयमाला
आशीषी छाहों में
अपनी निगाहों में
रख लो हमें
और कुछ चाहूँ न मैं
नाँदां मैं भोला-भाला हूँ
ज्यादा न पैसे वाला हूँ
बस भरोसे वाला हूँ
आपका ही हूँ मैं
रख लो हमें
आसमानी राहों में
अपनी निगाहों में
आशीषी छाँवों में
अपनी निगाहों में
रख लो हमें
और कुछ चाहूँ न मैं
माटी की गृहस्थी वाला हूँ
न ज्यादा ऊँची हस्ती वाला हूँ
बस पिये मीरा सा भक्ति प्याला हूँ
आपका ही हूँ मैं
रख लो हमें
आसमानी राहों में
अपनी निगाहों में
आशीषी छाँवों में
अपनी निगाहों में
रख लो हमें
और कुछ चाहूँ न मैं
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
हाईकू
गुरु उनके होते जाते,
जो पापों को खोते जाते
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