- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 472
=हाईकू=
रोने से पूर्व-ऽपूर्व थमाते,
गुरु माँओं में आते ।।स्थापना।।
जल लग न पाया हाथ,
दृग्-जल ले आया साथ ।।जलं।।
चन्दन लगा न हाथ,
काम ‘गो रे’ ले आया साथ ।।चन्दनं।।
अक्षत लगा न हाथ,
परिणत ले आया साथ ।।अक्षतं।।
सुमन लग न पाया हाथ,
मन ले आया साथ ।।पुष्पं।।
व्यञ्जन लगा न हाथ,
सिमरन ले आया साथ ।।नैवेद्यं।।
घी-दिया लग न पाया हाथ,
धिया ले आया साथ ।।दीपं।।
अगर लगा न हाथ,
सरस गिर् ले आया साथ ।।धूपं।।
श्रीफल लगा न हाथ,
दोनों जोड़ के आया हाथ ।।फलं।।
अर्घ लगा न हाथ,
झुका कर के आया माथ ।।अर्घ्यं।।
=हाईकू=
उसकी चाँदी-चाँदी,
डोर जिसने गुरु से बाँधी
जयमाला
भिजा रहा हूँ मैं पाती
आस-पास ही
मेरे आस-पास ही
यहीं कहीं
तुम रहते हो हालांकि
फिर भी गुरु जी
भिजा रहा हूँ मैं पाती
ली तुमने न मेरी खबर
जब से
तब से
हैं मेरे नैन तरबतर
है तेरी याद बहुत आती
भिजा रहा हूँ मैं पाती
दी तुमने न अपनी खबर
जब से
तब से
है बेचैन मेरा जिगर
है मेरे नैन तरबतर
है तेरी याद बहुत आती,
भिजा रहा हूँ मैं पाती,
मैंने हिचकी भेजी
यहां से लगा तुमसे तार
लगातार मैंने तुम्हें
नुति प्रनुति भेजी
ली तुमने न मेरी खबर
दी तुमने न अपनी खबर
है मेरे नैन तरबतर
आस-पास ही
मेरे आस-पास ही
यहीं कहीं
तुम रहते हो हालांकि
फिर भी गुरु जी
भिजा रहा हूँ मैं पाती
है तेरी याद बहुत आती
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
गुरु चरण-सन्निधि से,
बढ़ के और न निधि
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