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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 471

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 471

=हाईकू=
लेने वाला ले लेता,
‘लिफ्ट’ दें कब गुरु-‘दे-बता’ ।।स्थापना।।

जल की भेंट चढ़ाते,
रीझो हम तुम्हें मनाते ।।जलं।।

चन्दन भेंट चढ़ाते,
त्राहि माम् ! क्यों हमें भुलाते ।।चन्दनं।।

अक्षत भेंट चढ़ाते,
लो जोड़ ‘ना’ बेजोड़ नाते ।।अक्षतं।।

पुष्पों की भेंट चढ़ाते,
आ भी जाओ ‘ना’ क्यों रुलाते ।।पुष्पं।।

नैवेद्य भेंट चढ़ाते,
तुम सिर्फ हो मुझे भाते ।।नैवेद्यं।।

दीपक भेंट चढ़ाते,
सुना, माटी घड़ा बनाते ।।दीपं।।

धूप ये भेंट चढ़ाते,
जग धूप आप औ’ छाते ।।धूपं।।

श्रीफल भेंट चढ़ाते,
बिन माँग तुमसे पाते ।।फलं।।

अर्घ्य की भेंट चढ़ाते,
झुक झूम नाचते गाते ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
दूरदर्शी हैं,
लासानी, आप ज्ञानी तल स्पर्शी हैं

जयमाला

नित-दर्शन मिल ही रहा तेरा
दिग्दर्शन मिल ही रहा तेरा
हूँ बड़भागी मैं
पाके तुम्हें
ख्वाबों, ख्यालों में
दिल में बसने वालों में
पा के तुम्हें
इतने करीब
एक अजीबोगरीब
मिलता है सूकूँ हमें
पा के तुम्हें
इतने करीब
हूँ बड़भागी मैं
पाके तुम्हें

राहों, निगाहों में
धड़कन की तानों में
पाके तुम्हें
पा के तुम्हें
इतने करीब
हूँ बड़भागी मैं
पाके तुम्हें

सांसों, अहसासों में,
फेंके किस्मत के पासों में
पाके तुम्हें
पा के तुम्हें
इतने करीब
हूँ बड़भागी मैं
पाके तुम्हें

इतने करीब
एक अजीबोगरीब
मिलता है सूकूँ हमें

।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
हरेक पन्ना-ए-जिन्दगी,
पा जाये आप-बन्दगी

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