- परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 469
*हाईकू*
करते तप तरु,
करने-कर-सेवा श्री गुरु ।।स्थापना।।
जल्दी जल्दी में आया,
दृग् जल, जल जगह लाया ।।जलं।।
जल्दी जल्दी में आया,
हल्दी, चन्दन जगह लाया ।।चन्दनं।।
जल्दी जल्दी में आया,
टूट, अक्षत जगह लाया ।।अक्षतं।।
जल्दी जल्दी में आया,
धाँ रंगे, पुष्प जगह आया ।।पुष्पं।।
जल्दी जल्दी में आया,
स्वर-व्यंजन जगह आया ।।नैवेद्यं।।
जल्दी जल्दी में आया,
दृग्-ज्योत, ज्योत जगह आया ।।दीपं।।
जल्दी जल्दी में आया,
लवंग, धूप जगह लाया ।।धूपं।।
जल्दी जल्दी में आया,
पिस्ता, श्रीफल जगह लाया ।।फलं।।
जल्दी जल्दी में आया,
जो यही अर्घ्य जगह लाया ।।अर्घ्यं।।
*हाईकू*
किरदार की खुश्बू,
गुरु-‘जी’ ‘हर-द्वार’ रही छू
जयमाला
उठो
चलो उठो
तुम भले कहो
पै ऐसे कैसे उठे
अभी तो हम आये हैं
नैन भर के तुम्हें
देख भी न पाये हैं
भगवन् मेरे अहो
तुम भले कहो
उठो
चलो उठो
तुम भले कहो
मुस्कान तुम्हारी
वाणि निशि तम हारी
हुई अभी है कहाँ हमारी
पूरी तरह
अय ! शरण बेवजह
तुम भले कहो
उठो
चलो उठो
छाँव छतर निराली
इक नजर तुम्हारी
हुई अभी है कहाँ हमारी
पूरी तरह
अय ! शरण बेवजह
तुम भले कहो
पै ऐसे कैसे उठे
अभी तो हम आये हैं
नैन भर के तुम्हें
देख भी न पाये हैं
भगवन् मेरे अहो
तुम भले कहो
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
*हाईकू*
लगाते ‘गुरु’ डाँट-डपट,
साथ मुस्कुराहट
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