परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक 457=हाईकू=
होना तेरा ‘दे बता’
क्या होगा, पूरा सपना मेरा ।।स्थापना।।भेंटूँ जल ए ! तुंग गिरवर,
दो भेंट सबर ।।जलं।।भेंटूँ चन्दन ए ! पाणि-पातर,
दो भेंट सबर ।।चन्दनं।।भेंटूँ अक्षत ए ! रु-तरुवर
दो भेंट सबर ।।अक्षतं।।भेंटूँ पुष्प ए ! सत्-शिव-सुन्दर,
दो भेंट सबर ।।पुष्पं।।भेंटूँ व्यंजन ए ! अजरामर,
दो भेंट सबर ।।नैवेद्यं।।भेंटूँ दीप ए ! ज्ञान समन्दर,
दो भेंट सबर ।।दीपं।।भेंटूँ धूप ए ! शान्त सरवर,
दो भेंट सबर ।।धूपं।।भेंटूँ फल ए ! नृसिंह अपर,
दो भेंट सबर ।।फलं।।भेंटूँ अर्घ ए ! बेदाग चूनर,
दो भेंट सबर ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
कोई उस-सा नहीं दूजा,
करता जो गुरु पूजाजयमाला
गुणगान अचिन्त्य अनूप ।
श्री गुरु भगवंत स्वरूप ।।कौड़ी न पास रखते ।
नत नम नजरें तकते ।।
चिच्-चिदानंद चिद्रूप ।
श्री गुरु भगवंत स्वरूप ।।१।।बोलें मिसरी घोलें ।
पलकें पल को खोलें ।।
नित निमग्न निज-रस कूप ।
श्री गुरु भगवंत स्वरूप ।।२।।क्या कहे, ज्ञात रस…ना ।
आता मन को कसना ।।
कलि काल चतुर्-थस्-तूप ।
श्री गुरु भगवंत स्वरूप ।।३।।दिवि लाभान्वित धरती ।
बेवजह दया झिरती ।।
बरगदी छांव जग धूप ।
श्री गुरु भगवंत स्वरूप ।।४।।गिन सका कौन तारे ।
सुनते सुर-गुरु हारे ।।
लो साध निरा-कुल चूप ।
श्री गुरु भगवंत स्वरूप ।।५।।।। जयमाला पूर्णार्घं ।।
=हाईकू=
हैं अंधकार घिरे,
‘त्राहि माम्’
मंत्र नौकार मिरे
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