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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 454

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 454

=हाईकू=
दिखे दरख्ती सोच वाले,
‘कि देते खो, सख्ती-ताले ।।स्थापना।।

आत्मबल के रंग दो रंग,
लाये दृग् जल संग ।।जलं।।

सु-मरण के रंग दो रंग,
लाये चन्दन संग ।।चन्दनं।।

समकित के रंग दो रंग,
लाये अक्षत संग ।।अक्षतं।।

मरहम के रंग दो रंग,
लाये कुसुम संग ।।पुष्पं।।

निरंजन के रंग दो रंग,
लाये व्यंजन संग ।।नैवेद्यं।।

‘आई-अख’ के रंग दो रंग,
लाये दीपक संग ।।दीपं।।

ढ़ाय-क्षर के रंग दो रंग,
लाये अगर संग ।।धूपं।।

मिश्री फल के रंग दो रंग,
लाये श्रीफल संग ।।फलं।।

धी सजग के रंग दो रंग,
लाये अरघ संग ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
छिड़कें भक्तों पे जान,
‘गुरु’
रुठें तो जायें मान

जयमाला
।। जयतु जयतु गुरुदेव ।।

नगन दिगम्बर देह ।
यद्यपि देह वैदेह ।।
सार्थक ‘जगत’ सदैव ।
जयतु जयतु गुरुदेव ।।

हाथन लुंचन केश ।
विगत राग, गत द्वेष ।।
रत मां प्रवचन सेव ।
जयतु जयतु गुरुदेव ।।१।।

वृक्ष मूल चौमास ।
आतप अभ्रवकाश ।।
भांत स्वयं स्वय-मेव ।
जयतु जयतु गुरुदेव ।।२।।

परहित नैन पनील ।
चुन उत्तर गुण शील ।।
पुण्य सातिशय जेब ।
जयतु जयतु गुरुदेव ।।३।।

सु…मरण संध्या तीन ।
ज्ञान ध्यान लवलीन ।।
शिशु मन विगत फरेब ।
जयतु जयतु गुरुदेव ।।४।।

अगम वचन गुण गाथ ।
सहज नमन नत माथ ।।
हित उत्-तारण खेव ।
जयतु जयतु गुरुदेव ।।५।।

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
रहे करिश्मा हो के ही,
जो मानी श्री-गुरु की कही

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