परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक 449=हाईकू=
देख बच्चों की पीर,
आ ही जाता दृग्-माँओं के नीर ।।स्थापना।।मैं न मिटाने लगूँ और लकीर,
चढ़ाऊँ नीर ।।जलं।।राख के लिये न जला चन्दन दूँ,
चन्दन भेंटूँ ।।चन्दनं।।केली फरती देख, उखाड़ूँ आम ना,
चढ़ाऊँ धाँ ।।अक्षतं।।धागे के लिये, कण्ठी न तोड़ बैठूँ,
मैं पुष्प भेंटूँ ।।पुष्पं।।न सुनूँ कभी, ‘लम्बी जुबाँ दो गज’,
भेंटूँ नेवज ।।नैवेद्यं।।पाल बाँध खे लूँ अपनी पोत,
मैं प्रजालूँ ज्योत ।।दीपं।।न सिर चढ़ के बोले पैसा-रूप,
मैं खेऊँ धूप ।।धूपं।।खो सकूँ साँझ-साँझ श्वानी-गहल
भेंटूँ श्री फल ।।फलं।।भेड़ों से चल सकूँ, कुछ अलग,
भेंटूँ अरघ ।।अर्घ्यं।।=हाईकू=
गुरु-कीर्तन,
दे हल्का बना मन,
गुरूर-हन।।जयमाला।।
।। शत अभिनन्दन ।।
श्रीमति नन्दन ।
यतिपति वन्दन ।।
दुरित निकंदन ।
शत अभिनन्दन ।।१।।।। जय गुरुदेवा ।।
तारक खेवा ।
दृग् जुग रेवा ।।
दुख सिर लेवा ।
जय गुरुदेवा ।।२।।।। जय-जय गुरुवर ।।
छैय्या तरुवर ।
गैय्या गिरधर ।।
नैय्या सिरपुर ।
जय-जय गुरुवर ।।३।।।। गुरु जी जय-जय ।।
दिव नायक तय ।
पुण्य सातिशय ।
शिव तिय परिणय ।।
गुरु जी जय-जय ।।४।।।। साध वन्दना ।।
ज्ञान नन्दना ।
मोह गन्ध ना ।
मोख स्यन्दना ।।
साध वन्दना ।।५।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।=हाईकू=
पाता रहे यूँ-ही, गन्धोदक तेरा,
मस्तक मेरा
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